वैदिक संस्कृति को समर्पित आदर्श जीवन !

“आर्यरत्न आचार्य गुरुदत्त जी आर्य”

यह सत्तर के दशक की घटना है। तब उत्तरप्रदेश में संविद (संयुक्त विधायक दल) की सरकार थी। एक दिन भारतीय वेशभूषा- धोती-कुर्ता, टोपी पहिने एक सज्जन पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा संपादक ‘देहात’ के पास आये और बताया कि वे एक प्राइमरी अध्यापक हैं। निष्ठा से अपने कर्त्तव्यों का पालन करते है किन्तु मुझे नाहक परेशान किया जा रहा है। उन्होंने अपनी परेशानी और व्यथा बताई। उन दिनों जनसंघ के कोटे से श्रीमती मालती शर्मा सरकार में शिक्षा उपमंत्री थीं, जो मुजफ्फरनगर की रहने वाली थीं। जैसा कि आमतौर पर होता आया है, सत्ता के गलियारों में मतलबी, स्वार्थी, चापलूसों की घुसपैठ हो जाती है। राज सिंहासन पर बैठा व्यक्ति अपना विवेक खोकर इन चाटुकारों के जाल में फंसकर गलत निर्णय लेने लगता है। इन अध्यापक महोदय के साथ ऐसा ही कुछ हुआ था।

इन अध्यापक महोदय ने अपना नाम गुरुदत्त, निवासी ग्राम मुंडभर बताया था। पिताजी ने उनकी सारी बातें शांतिपूर्वक सुनीं और कहा- ‘आप सत्य के मार्ग पर हैं, कोई मंत्री आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’ उन्होंने श्रीमती मालती शर्मा और उनके खास सिपहसालार किशनचन्द हकीम जी को अच्छे से समझा दिया कि शिक्षक गुरुदत्त जी ईमानदार और कर्त्तव्य परायण चरित्रवान सज्जन हैं। इन्हें नाहक परेशान करने का परिणाम अच्छा नही होगा।

तब से आजतक हमारे परिवार से आचार्य गुरुदत्त जी का आत्मीय संबंध है। अध्यापक रहते हुए उनकी जानकारी श्री वीरेन्द्र वर्मा एवं श्री रामचन्द्र विकल से हुई जो अक्सर ‘देहात’ भवन आते रहते थे। दोनों सज्जन ऋषि दयानन्द के आदर्शों के प्रतिपालक थे और गुरुदत्त जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी पुरातन वैदिक संस्कृति से प्रभावित थी। उनके माता-पिता ने जो संस्कार उन्हें दिये, उनके अनुरूप वे अपना जीवन चला रहे थे।

आपने सरल, सात्विक जीवन जिया और संयम व सदाचारपूर्वक ग्रहस्थ तथा अध्यापकीय जीवन निर्वहन करते हुए वैदिक संस्कृति का प्रसार प्रचार किया। सेवाकाल के दौरान ही एक आदर्श शिक्षक और समाज सुधारक के रूप में सभी कुरीतियों- छूआ-छूत, जातिवाद, मद्यपान, भ्रष्टाचार, भ्रूणहत्या के विरुद्ध अभियान चलाया। हजारों की संख्या में हवन-यज्ञ, अनुष्ठान व सत्संग कराये, सहस्रों सत्यार्थ प्रकाश भेंट किये और बड़ी संख्या में वैदिक संस्कृति के पोष‌क तथा विद्वानों का अभिनन्दन व सम्मान किया।

आचार्य जी को सन्‌ 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री चन्द्र‌शेखर ने प्रशस्ति पत्र देकर और शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया। 1994 में उन्हें आदर्श राजकीय शैक्षक का सम्मान मिला। 1999 के आर्य महासम्मेलन मेरठ में तत्कालीन राज्यपाल श्री वीरेन्द्र वर्मा ने आचार्य गुरुदत्त जी को आर्यरत्न उपाधि से नवाजा। उनकी सेवाओं को दृष्टिगत रख देशभर की 40 से अधिक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। डॉ. योगेन्द्र नारायण, महासचिव राज्यसभा, वरिष्ठ आईएएस विनोद शंकर चौबे, वीरेन्द्र मिश्र, माता प्रसाद पांडेय अध्यक्ष उप्र विधान सभा आदि व्यक्तिगत रूप से उनकी सेवाओं की सराहना करते हैं।

वे एक व्यक्ति नहीं अपितु एक संस्था के रूप में सक्रिय रहे। जीवन भर आर्य संस्कृति के प्रसार-प्रचार में लगे रहे। सेवानिवृत्ति के पश्चात उनकी सेवाओं का दायरा और भी विस्तृत हो गया है। हम आचार्य जी के स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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