तालिबान से भारत को भी सावधान रहने की जरूरत !

जब ये ‘पंक्तियां’ लिखी जा रही हैं तब से और जब ये पढ़ी जा रही होंगी तब तालिबानी आधिपत्य के अफगानिस्तान में स्थितियां और भी भयंकर हो चुकी होंगी। यह क्रूर विडंबना है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र ध्वज फहराने के बाद गतिशक्ति की 25 वर्षों की महत्वकांक्षी तस्वीरें करोड़ों भारतीयों के समक्ष पेश कर रहे थे और राष्ट्र के हितार्थ राजनीतिक इच्छाशक्ति की महत्ता का बखान कर रहे थे तब अफगानिस्तान के अपदस्थ राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी अफगानी पुरुषों, स्त्रियों व बच्चों को हैवानी तालिबानियों का शिकार बनने को अकूत धन को हेलीकॉप्टर व कारों में भर कर देश से पलायन कर रहे थे।

चाहे अफगानिस्तान हो या वियतनाम अथवा भारत ही क्यूं न हो जिस देश के नागरिकों व नेतृत्व में दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और राष्ट्रप्रेम की भावना होती है, एकता होती है, वहां बड़े से बड़े शक्तिशाली व खूंखार हमलावर को शिकस्त मिलती है, वियतनाम का उदाहरण हमारे सामने है। हो चि मिन्ह की दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने दुनिया की महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका वियतनाम के चप्पे-चप्पे पर बमवर्षा करने के बाद भी पीछे हटने को मजबूर हुआ।

भारत को ही लें जब विशाल आर्यावर्त में रहे व्रता में महान अशोक और चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य जैसे दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति वाला नेतृत्व था तब अफगानिस्तान तक भारत का विस्तार था। दुनिया के नक्शे में अफगानिस्तान नाम का कोई देश नहीं था, वह भारत के एक महाजनपद के रूप में जाना जाता था। बौद्ध धर्म के प्रसार के समय भी वह भारत का ही भूभाग था। बीस वर्ष पूर्व तालिबानों ने भारत के प्राचीन गौरव व आर्यावर्त की सीमाओं की असलियत छिपाने के उद्देश्य से महात्मा बुद्ध की विशालकाय मूर्तियां बमों से उड़ाई थीं।

इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार करने में बुराई नहीं अपितु अच्छाई है कि नेतृत्व की राजनीतिक इच्छाशक्ति न होने व मुट्ठीभर हमलावरों के पिट्ठू बने गद्दारों के कारण विराट देश हजारों साल तक विदेशी आक्रांताओं का गुलाम बना रहा। पुरानी बातों को छोड़े। नेता, सियाचिन कश्मीर के बड़े भू-भाग पर हुआ कब्जा तो अभी का है, जो भारत के तत्कालीन नेतृत्व की कमजोरी व दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव का ही दुष्परिणाम है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव से ही अफगानिस्तान की साढ़े चार लाख सैनिकों की सेना को मात्र 75 हजार आतंकियों के आगे घुटने टेकने पड़े।

तालिबानी जीत पर पाकिस्तान व चीन की भांति भारत में खुशियां मनाने वालों से भी उसी तरह सावधान रहने की जरूरत है, जैसे तालिबानी आतंकियों से क्यूंकि ज़हर की एक बूंद क्विंटलों दूध को विषाक्त करने को काफी है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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