राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्य इन दिनों प्रदूषण की मार झेल रहे है। हवा की मंद गति और वातावरण में स्मॉग जैसी स्थिति बने रहने के कारण अधिकांश शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। इसी वजह से इन शहरों का एयर इंडेक्स बेहद खराब श्रेणी में पहुंच गया है। शहरों में बढ़ती दूषित हवा से साफ हो गया है कि वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 2019 में लागू किया गया नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) अधिक कारगर साबित नहीं हुआ है। शहरों में प्रदूषण को रोकने के लिए जारी धनराशि धूल फांक रही है। कई राज्यों ने इस राशि का इस्तेमाल नहीं किया है। जबकि कुछ राज्यों के शहरों ने इसे दूसरी परियोजनाओं पर खर्च कर डाली है।

दरअसल, देश भर के 131 शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) लागू किया गया था। सरकार ने वर्ष 2023-24 में विभिन्न राज्यों के 18 शहरों में पीएम-10 (10 माइक्रोन या उससे कम व्यास वाले कण) को कम कर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक लाने का लक्ष्य हासिल कर लिया गया था। लेकिन इन शहरों में यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि, 30 शहरों में पीएम 10 का स्तर वर्ष 2017-18 के मुकाबले बढ़ा है। इन शहरों में वायु गुणवत्ता पहले के मुकाबले अधिक खराब हुई है।

उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि, कई शहर प्रदूषण को नियंत्रण को नहीं कर पा रहे है। वे प्रदूषण रोकने के महत्त्वपूर्ण संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इस श्रेणी में आने वाले शहरों को एनकैप के तहत वर्ष 2019 से 2024 तक 10,595 करोड़ रुपये मिले थे। विभिन्न शहर उपलब्ध राशि में से 6,922 करोड़ रुपये या 65.3 प्रतिशत रकम का ही इस्तेमाल कर सके हैं। लक्ष्य हासिल नहीं करने में ऐसे शहर शामिल है जो पीएम 10 या नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक तत्वों के लिए तय मानकों को पूरा करने में लगातार पांच तक पिछड़ गए है। 113 शहरों में पीएम 10 का तय मानक से लगातार बढ़ा हुआ हैं। जबकि 23 शहरों में यह 40 प्रतिशत तक घटा भी है।

यूपी का वाराणसी रहा सबसे आगे

वायु प्रदूषण में 68 प्रतिशत तक गिरावट लाकर उत्तर प्रदेश का वाराणसी आगे रहा है। यहां वर्ष 2018 में पीएम 10 का स्तर 230 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से घट कर वर्ष 2024 में 73 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया। इसके उलट ओडिशा के आंगल में पीएम 10 के स्तर में 78 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली। आंगल को एनकैप के तहत वर्ष 2019-20 से वित्त वर्ष 2024 तक 2.32 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन इस अवधि में इस रकम में से केवल 1.17 करोड़ रुपये ही खर्च हो सका है। वर्ष 2020 और 2021-22 में ये शहर उपलब्ध धनराशि का इस्तेमाल नहीं कर पाया था।  इससे यहां पीएम 10 के स्तर में तेज वृद्धि देखने को मिली। वर्ष 2018 में यहां पीएम 10 का स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो 2024 में बढ़ कर 167 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर आ गया। दूसरी ओर वाराणसी को इस अवधि में 269.21 करोड़ रुपये का अनुदान मिला था, जिसमें से 129.39 करोड़ रुपये का उपयोग हुआ है।

शहरों ने प्रदूषण रोकने की राशि दूसरे कामों में की खर्च

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इसी साल मार्च में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को बताया था कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए वर्ष 2019 में 19 शहरों को 1,644.4 करोड़ रुपये की धनराशि दी गई थी। लेकिन कई राज्यों ने इस राशि को सड़कें, फव्वारे और फुटबॉल मैदान जैसी दूसरी परियोजनाओं में खर्च कर दिया, जिनका प्रदूषण को काबू करने से कोई लेना-देना नहीं था। एनकैप के तहत वर्ष 2024-25 तक कुल 11,211.13 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। पिछले वर्ष नवंबर में एनजीटी ने वायु प्रदूषण वाले देश के 53 शहरों और कस्बों को चिह्नित किया था और संबंधित राज्यों से इस दिशा में सुधार के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था। न्यायाधिकरण ने राज्यों से फंड के इस्तेमाल से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट भी तलब की थी।

गौरतलब है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2019 में तैयार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनकैप) में प्रदूषण कम करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जाने की वकालत की थी। इनमें पौधरोपण, मशीनों से सफाई कार्य, सड़कों पर पानी का छिड़काव, चरणबद्ध तरीके से पुराने कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों को हरित ऊर्जा में परिवर्तित करने, यातायात दबाव वाले प्रमुख स्थलों पर फव्वारे लगाने, डीजल जनरेटरों का इस्तेमाल होने से रोकने के लिए पर्याप्त बिजली आपूर्ति करने, उद्योगों में प्रदूषण संबंधी नियमों का सख्ती से पालन, ईवी को बढ़ावा देने और निर्माण एवं ध्वस्तीकरण के मलबा समेत कचरा प्रबंधन करने आदि शामिल हैं।