माह-ए-रमजान इस्लाम के सबसे पाक और मुबारक महीनों में से एक है, जोकि शाबान के बाद आता है. दुनियाभर के मुसलमानों को रमजान का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है, जो कि आखिरकार खत्म हुआ. आज यानी 1 मार्च को भारत में कुछ जगहों पर रमजान का चांद नजर आया है, जिसके बाद मुसलमानों में खुशी का माहौल है. दिन ढलने के साथ ही सभी की निगाहें आसमान पर ही टिकी हुई थी, क्योंकि चांद का दीदार करने के बाद ही माह-ए- रमजान की मुबारकबाद दी जाती है और रोजे रखे जाते हैं.
रमजान का मुकद्दस महीना मुसलमानों के लिए बेहद खास होता है, जिसमें मुसलमान 29 या 30 दिनों तक रोजे रखते हैं. हर बालिग और सेहतमंद शख्स के लिए रोजा रखना फर्ज होता है. रोजा इस्लाम के पांच सबसे जरूरी अरकान यानी स्तंभों में से एक है. रमजान का चांद दिखने के साथ सभी मस्जिदों में तरावीह की तैयारी शुरू हो गई है. चांद के दीदार के साथ ही बाजारों में रौनक देखने को मिल रही है. रमजान के दौरान रोजेदारों के लिए सहरी और इफ्तार भी अहम होता है.
रमजान में तरावीह की नमाज
रमजान में पांच वक्त की नमाज के अलावा एक खास नमाज अदा की जाती है, जिसे तरावीह की नमाज कहा जाता है. पूरे माह-ए-रमजान में तरावीह की नमाज पढ़ी जाती है. हालांकि, तरावीह की नमाज किसी भी मुसलमान पर फर्ज नहीं है. तरावीह की नमाज इस्लाम में सुन्नत-ए-मुअक्किदा मानी गई है, यानी इसे पढ़ने जरूरी भी नहीं है और न पढ़ने पर कोई गुनाह भी नहीं है. हालांकि, तरावीह की नमाज पढ़ने पर ज्यादा सवाब मिलता है.
रमजान के चांद का दीदार होने के साथ ही तमाम मस्जिदों में तरावीह पढ़ी जाती है. तरावीह की नमाज ईशा की नमाज के बाद अदा की जाती है और जरूरी नहीं कि तरावीह की नमाज मस्जिद में जमात के साथ ही पढ़ी जाए. इसे आप अपने घर पर अकेले में भी पढ़ सकते हैं.
माह-ए-रमजान की अहमियत
मुसलमानों के लिए रमजान का महीना इसलिए भी ज्यादा अहमियत रखता है, क्योंकि इसमें इस्लाम धर्म की सबसे पाक किताब कुरआन नाजिल हुई थी यानी उतारी गई थी. रमजान में रोजे रखना इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है. हालांकि, कुछ हालातों में रोजा न रखने की छूट दी गई है. नाबाबिग बच्चे, प्रेग्नेंट महिला, बुजुर्ग, बीमारी और पीरियड्स की हालत में रोजा न रखने की इजाजत है.