पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (एसआईआर) प्रक्रिया के बीच तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले ने चुनाव आयोग द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एप को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। गोखले का आरोप है कि आयोग ने ऐप के डेवलपर और इसकी सुरक्षा व कार्यप्रणाली के बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की है, जिससे पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

गोखले ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि आयोग मतदाता सूची में फर्जी या मृत व्यक्तियों के नाम हटाने के लिए एआई तकनीक का उपयोग कर रहा है, लेकिन एप किसने बनाया, इसकी जांच कैसे की गई और संभावित पक्षपात को रोकने के उपाय क्या हैं—इन सभी सवालों पर आयोग मौन है। उन्होंने कहा कि संवेदनशील प्रक्रिया में अस्पष्ट तकनीक का इस्तेमाल चिंताजनक है।

एआई सिस्टम की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल

चुनाव आयोग का दावा है कि यह एआई सिस्टम मतदाता डेटाबेस में चेहरे की समानता का विश्लेषण कर डुप्लीकेट एंट्री की पहचान करेगा। लेकिन गोखले ने पूछा कि जब साधारण पीडीएफ सॉफ्टवेयर से भी डुप्लीकेट खोजा जा सकता है, तब एआई की आवश्यकता क्यों पड़ी। उनका कहना है कि यह तकनीक जरूरत से ज्यादा जटिल दिखाई देती है और इससे पारदर्शिता के बजाय शक बढ़ता है।

पिछले आरोपों का हवाला

गोखले ने 2019 के अपने पुराने आरोप दोहराए, जिसमें उन्होंने कहा था कि उस समय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र में भाजपा आईटी सेल से जुड़े एजेंसी को काम दिया था। इस बार भी उन्होंने आशंका जताई कि यह रहस्यमयी एप किसी राजनीतिक रूप से जुड़े डेवलपर द्वारा तो नहीं बनाया गया। उन्होंने कहा कि आयोग की तरफ से जानकारी छिपाने से संदेह और बढ़ता है।

ममता बनर्जी के पत्र का जिक्र

सांसद ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस पत्र का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने 1,000 डेटा एंट्री ऑपरेटर और 50 सॉफ्टवेयर डेवलपर को बाहर से नियुक्त किए जाने पर सवाल उठाए थे। गोखले ने कहा कि इतना बड़ा ऑपरेशन बाहरी लोगों के हवाले होने के कारण चुनाव आयोग को और अधिक पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए, लेकिन इसके विपरीत जानकारी छिपाई जा रही है।

एसआईआर प्रक्रिया पर पारदर्शिता का दबाव

गोखले ने आरोप लगाया कि एसआईआर प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि इससे जुड़ी कई जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची जैसे संवेदनशील दस्तावेज़ पर ‘रहस्यमयी तकनीक’ का इस्तेमाल संदिग्ध है और आयोग को तुरंत स्पष्ट करना चाहिए कि एप किसका है, कैसे काम करता है और डेटा सुरक्षा मानक क्या हैं।