नेता नहीं चाहते सुशासन!

यह दु:खद और शर्मनाक स्थिति है कि आजादी के 75 वर्ष होने के बाद भी कोई सरकार सक्षम एवं जवाबदेह प्रशासनिक व्यवस्था कायम नहीं कर सकी। गुड गवर्नेंस या सुशासन की हवाई बातों के अलावा जमीनी स्तर पर इस दिशा में कोई सार्थक कार्यनीति नहीं अपनाई गई। इसका दुष्परिणाम सबसे अधिक गरीब, पिछड़े व कमजोर तबके को भुगतना पड़ रहा है।

नौकरशाही या प्रशासन तंत्र की इस दुरावस्था में यदि कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी कर्तव्य पालन करता है अथवा अतिरिक्त सिरदर्दी उठा कर कुछ काम करता है तो लोगों को सुखद आश्चर्य होता है। ऐसी ही एक घटना आगरा में सामने आई है। अभी 30 जुलाई को आगरा के जिला अल्पसंख्यक अधिकारी विजय प्रताप यादव, जिनके पास जिला समाज कल्याण अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार भी है, सिटी बस से कार्यालय जा रहे थे। उनकी बगल में भीमनगर निवासी वृद्ध शकुंतला तथा एक अन्य वृद्धा बैठी थी। संयोग से ये दोनों भी अपनी पुरानी समस्याओं के निराकरण के उद्देश्य से समाज कल्याण कार्यालय जा रहीं थी और दफ्तर के बार-बार चक्कर काटने का दर्द बयां कर रही थीं। श्री यादव ने उनकी बातें सुनकर समस्या पूछी तो शकुंतला ने बताया कि उसे सन् 2020 तक वृद्धावस्था पेंशन बिना बाधा मिलती रही किंतु बाद में पेंशन मिलनी बंद हो गई। दूसरी वृद्ध ने बताया कि मैं पेंशन के बारे में जानकारी लेना चाहती हूं, किंतु दफ्तर वाले कोई रास्ता नहीं देते।

श्री यादव ने बस में ही दोनों वृद्धाओं से कागजात लिये और अपने मोबाइल फोन से कागज़ों को स्कैन कर कार्यालय भेज दिया तथा निर्देश दिया कि मेरे कार्यालय पहुंचने पर जरूरी जानकारियां मेरी मेज पर पहुंच जायें। ऐसा ही हुआ। शकुंतला के मामले में पता चला कि उसे जिस बैंक के ज़रिये पेंशन मिलती थी, वह बैंक पंजाब नेशनल बैंक में मर्ज (विलय) हो गया है जिसे शकुंतला के खाते से लिंक नहीं किया गया है। अधिकारी ने उसे तुरंत लिंक कराया। अगले महीने से पुराने बकाया सहित पेंशन मिलनी शुरू हो जाएगी। दूसरी वृद्धा की समस्या का निराकरण मिनटों में कर दिया गया। दोनों वृद्धायें विजय प्रताप यादव को आशीष देती हुई घरों को लौटीं।

यह घटना हमारी भद्दी व्यवस्था की तस्वीर पेश कर दी है। यदि अधिकारी संस्कारवान एवं कर्तव्य के प्रति निष्ठावान है तो शकुंतला जैसों की समस्यायें हल होंगी अन्यथा दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते उनके चप्पल घिस जाते हैं, काम फिर भी नहीं हो पाता। क्या इसके लिए सिर्फ सरकारी मशीनरी ही दोषी है? जब अधिकारियों-कर्मचारियों की नियुक्ति व तैनाती बिरादरीवाद पर, थैलीवाद पर होगी और नेतागण ट्रांसफर/पोस्टिंग उद्योग चलाने लगेंगे तथा लोक सेवकों को अपना निजी कारिंदा मानकर हुकूमत चलायेंगे तो सुशासन भाड़ में ही जायेगा।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here