दक्षिण भारत में मोदी का उद्‌घोष !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा से पूर्व महाराष्ट्र, दक्षिण भारत के राज्यों में स्थित हिन्दू आस्था के प्रतीक पुरातन मन्दिरों तक पहुंचकर पूजा-अर्चना कर उत्तर-दक्षिण की दरार को पाटने का सद्‌प्रयास किया। आंध्र, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु के दौरों में नरेन्द्र मोदी ने जनमानस से सीधे जुड़ने की कोशिश की। काशी-तमिल समागम के वाराणसी में बुलाये गए सेमिनारों का उद्देश्य भी सनातन संस्कृति का ऐक्यभाव प्रदर्शित करना था।

नरेन्द्र मोदी के दक्षिण भारत के सघन दौरों का परिणाम यह हुआ कि एम.के.स्टालिन, उदयनिधि स्टालिन, ए.राजा आदि नेता हिन्दु-देवी देवताओं और भारत का अपमान करने के साथ-साथ नरेन्द्र मोदी को गालियां देने पर उतारू हैं। एम.के. स्टालिन की तमिलनाडु सरकार के मंत्री एम.अनबरसन ने जब जनसभा में ऐलान कर दिया कि मंत्री न होता तो नरेन्द्र मोदी की बोटी-बोटी काट देता। नरेन्द्र मोदी की बोटी-बोटी करने की धमकियां देने वालों या उन की कब्र खोदने वालों की धमकियों से राहुल गांधी बहुत प्रसन्न होते हैं तभी तो इमरान मसूद को फिर से अपने पहलू में ले लिया और डीएमके के मंत्री की धमकी पर मौन साधे बैठे हैं।

यह अभी कौन बता सकता है कि उत्तर-दक्षिण का भेद समाप्त करने और दक्षिणी भारत में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें जमाने में नरेन्द्र मोदी कहां तक सफल हो सकेंगे। हाँ, दुनिया यह जरूर देख रही है कि दक्षिण में मोदी के रोड शो व सभाओं में जनसैलाब खूब उमड़ रहा है।

इसका एक प्रमुख कारण यह है कि मोदी दक्षिण भारत में जहां भी गये, वहां के सरोकारों, वहां के महापुरुषों, आराध्य स्थलों व जनता जनार्दन की भावनाओं से जुड़े। दक्षिण भारत जाकर नरेन्द्र मोदी ने आदिशंकराचार्य को भी याद राखा; त्यागराज, स्वामीनारायण, वेमनाभक्त, महाकवि सुब्रमण्यम भारती और रामानुजन जैसे महापुरुषों को स्मरण किया। सम्पूर्ण भारत की सनातन आस्थाओं से जुड़े दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मन्दिरों- मीनाक्षी मंदिर, तिरुपति बालाजी मन्दिर, श्रीरामेश्वरम धाम, अयप्पा मंदिर, गुरुवयूर मंदिर, पद्मनाभ स्वामी मंदिर आदि के प्रति श्रद्धाभाव दिखाया या वहां जाकर शीष नवाया।

नरेन्द्र मोदी जहां जाते हैं, वहां कैसे लाखों दिलों से जुड़‌ जाते हैं, इसका उदाहरण तमिलनाडु के प्रसिद्ध शहर सलेम में देखने को मिला। सलेम से जुड़ी अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए श्री मोदी ने चालीस वर्ष पूर्व अपनी कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान मिले एक तमिल मित्र को भावनात्मक रूप से याद किया कि कैसे उससे तमिल भाषा के कुछ शब्द सीखे थे। भाजपा नेता लक्ष्मणन् तथा ऑडिटर रमेश को याद कर वे बहुत भावुक हो उठे। सन् 1992 में ऑडिटर रमेश की बम धमाके में मृत्यु हो गई थी, जब लालकृष्ण आडवाणी की सलेम में सभा हो रही थी। तब अन्य कई लोग भी शहीद हुए थे। श्री मोदी ने इन सभी को श्रद्धांजलि अर्पित की। शक्ति वेश में पहुंची महिलाओं को देख मंच पर बुलाया और उनको नमन् किया।

विपक्षी नेताओं तथा एजेंडाधारी पत्रकारों की निगाह में ये सब चुनावी लटके-झटके हैं, क्योंकि वे अभी तक ऐसा ही देखता आये हैं किन्तु यह तो हृदय की आवाज़ है जिसे कोई पत्थरदिल इंसान नहीं सुन सकता। कुछ लोग तो जोड़ने के नाम पर तोडने में लगे हैं, जबकि नरेन्द्र मोदी दक्षिण में पहुंच राष्ट्र की एकता और उसकी सुदृढ़ता का बिगुल बजा रहे हैं। इसका परिणाम शुभ ही होगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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