अमूल का दूध अमेरिका को !

देश में बने नकारात्मक वातावरण के बीच एक सकारात्मक खबर आई है। भारत की सबसे बड़ी सहकारी दूध उत्पादक संस्था-गुजरात सहकारी दूध उत्पादक महासंघ के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता ने मीडिया को एक बड़ी खुशखबरी दी है। पहले यह बता दें कि यह सहकारी संस्था ‘अमूल ब्रांड’ का दूध और दूध से बने अन्य उत्पादन बनाती और बेचती है। उच्च गुणवत्ता के कारण अमूल के दूध व उसके दूध उत्पादों- मक्खन, घी, पनीर, छाछ आदि की धूम है।

जयेन मेहता ने बताया है कि अब अमूल का ताजा दूध अमेरिका में भी उपलब्ध होगा। अमूल ने अमेरिका की 108 वर्ष पुरानी संस्था मिशिगन मिल्क प्रोड्यूसर्स के साथ व्यापारिक समझौता किया है जिसके अन्तर्गत अमूल का ताज़ा दूध अब अमेरिका के पूर्वी तट तथा मध्य-पश्चिमी क्षेत्र के उपभोक्ता स्टोरों में उपलब्ध होगा।

यह अमूल की नहीं, अपितु भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’, लोकल फॉर ग्लोबल नीति का साकार उदाहरण है।

कभी गुजरात के छोटे किसान व गौपालक आर्थिक रूप से परेशान थे। दूध उत्पादकों का खूब शोषण होता था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रगतिशील किसान त्रिभुवनदास पटेल ने किसानों-दूध उत्पादकों को प्रेरित किया कि वे मिलकर, सहयोग व सहकारिता के आधार पर इस समस्या का समाधान करें।

श्री पटेल ने 14 दिसंबर, 1946 को गुजरात के आणंद ग्राम में सहकारी दूध उत्पादक संस्था का शुभारंभ किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल और मोरारजी भाई देसाई ने किसानों की सहभागिता को भरपूर प्रोत्साहन दिया। स्व. लालबहादुर शास्त्री भी किसानों को सराहाने आणंद गये थे।

देश के करोडों दूध उत्पादक, 184 जिलों की एक लाख 44500 डेरियां आणंद दूध महासंघ से जुड़ी हैं। अमूल का वार्षिक टर्नओवर 72000 करोड़ रुपये है। श्वेत क्रान्ति के जनक डॉ. वर्गीज़ कुरियन का योगदान सदा के लिए अविस्मरणीय है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र‌ मोदी लोकल फॉर ग्लोबल का सन्देश देकर भारत को आर्थिक रूप से समृद्ध करने की सतत प्रेरणा दे रहे हैं। देश की समृद्धि के लिए जन-जन में आपसी सहयोग का जज्बा बनना अति आवश्यक है। आशा है देश का जन मानस प्रगति का मार्ग अवरुद्ध करने वाली शक्तियों को दुत्कार देगा और नये भारत के निर्माण में सहयोगी बनेगा। एक बात ओर। बड़े अखबार और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अमूल से करोड़ों का विज्ञापन राजस्व तो प्राप्त करते हैं लेकिन अमूल की विलक्षण सफलता की कहानी देश से रूबरू नहीं कराते। यह खेदजनक है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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