दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को रिमांड पर लेने की सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय के वकील जोहेब हुसैन ने कहा कि आबकारी नीति में बदलाव दक्षिण भारत के एक समूह को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। इस समूह को सक्षम बनाने के लिए सभी बदलाव किए गए। नीति को ऐसे तैयार किया गया कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ निजी संस्थाओं को भारी लाभ मिले।
इसके एवज में मोटी रिश्वत ली गई। ईडी के मुताबिक शराब घोटाले में 290 कराेड़ से अधिक आपराधिक आय अर्जित की गई। ईडी ने दावा किया कि शराब कार्टेल के ‘साउथ ग्रुप’ से रिश्वत के रूप में 100 करोड़ रुपये मिले थे और मामले में एक आरोपी कंपनी इंडोस्पिरिट्स ने 192.8 करोड़ रुपये का लाभ कमाया, जो आपराधिक आय का हिस्सा था।
हुसैन ने सिसोदिया के उस तर्क को भी सिरे से काट दिया कि नीति में बदलाव सार्वजनिक प्रतिक्रिया के जवाब में किए गए थे। जबकि आबकारी विभाग ने पुष्टि की है कि 12 फीसदी पर लाभ मार्जिन तय करने के लिए जनता या हितधारकों ने कोई सुझाव नहीं दिया था। हुसैन ने इंडोस्पिरिट्स नामक कंपनी को एल1 लाइसेंस सुनिश्चित करने में सिसोदिया की कथित भूमिका का भी जिक्र किया। उपमुख्यमंत्री ने वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया और एक ऐसी नीति अधिसूचित की जिसके महत्वपूर्ण वित्तीय प्रभाव है।
थोक खरीद, भंडारण और आपूर्ति का काम निजी कंपनियों को सौंपा
ईडी ने दावा किया कि सिसोदिया ने आबकारी नीति में बदलाव कर निर्माता से शराब की थोक खरीद, भंडारण और खुदरा दुकानों को आपूर्ति निजी कारोबारियों को सौंप दी। जबकि विशेषज्ञ समिति ने थोक संचालन को सरकारी संस्था के पास रखने की सिफारिश की थी। जिसके परिणामस्वरूप सरकार के बजाय निजी संस्थाओं को लाभ हुआ और सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचा। इससे भी गंभीर बात यह रहा कि सरकार का दिल्ली में शराब की आपूर्ति शृंखला पर नियंत्रण खो दिया, जबकि शराब से सरकार को अत्यधिक कर प्राप्त होता है।