स्कूल बंद होने से पेंसिल कारखानों के श्रमिक परेशान

आतंकवाद का गढ़ कहे जाने वाले पुलवामा जिले में एक छोटा सा गांव उखू देश भर में ‘पेंसिल वाला गांव’ के नाम से मशहूर है। देश भर में बनने वाली पेंसिलों में इस्तेमाल किया जाने वाला 90 फीसदी कच्चा माल इसी गांव से जाता है, लेकिन कोरोना के बीच यह गांव भी मंदी झेल रहा है, क्योंकि स्कूल बंद रहने से कच्चे माल की मांग में भारी गिरावट आई है। बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, जिससे पेंसिल का इस्तेमाल कम हो गया है।

इस कारण उखू गांव में रोजगार और कारोबार काफी प्रभावित हुआ है। कोरोना फैलने से पहले पुलवामा जिले में करीब 17 पेंसिल फैक्ट्रियां चलती थीं, जिनमें 4000 से अधिक लोग काम करते थे और यह उद्योग लगभग 300 परिवारों को आजीविका कमाने में मदद करता था, लेकिन बीते दो साल से स्कूल बंद हैं और इन फैक्ट्रियों में बनने वाले कच्चे माल की मांग में भारी गिरावट आई है, जिससे फैक्ट्री मालिकों को मजबूरन अपने कर्मचारियों की संख्या आधे से भी कम करनी पड़ी है।

गांव में मंजूर अहमद ने लगाई थी पहली फैक्टरी
उखू पुलवामा जिले में झेलम नदी के तट पर बसा एक छोटा सा गांव है। यह पहले अपनी आरा मिलों के लिए जाना जाता था। एक दशक पहले भारत पेंसिल बनाने के लिए लकड़ी का सामान चीन से आयात करता था। 2011 में मंजूर अहमद अलाई ने लकड़ी के स्लेट बनाना सीखने के लिए जम्मू का दौरा किया, जिसमें पेंसिल को काटा जाता है। अलाई ने प्रमुख पेंसिल निर्माता और निर्यातक ‘हिंदुस्तान पेंसिल’ की मदद से उखू गांव में एक फैक्ट्री लगाई। हल्के वजन की लकड़ी के लिए निर्माण उद्योग में व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाले सफेदे के पेड़ों को जमा किया गया और देश के अन्य हिस्सों में लकड़ी के ब्लॉक के रूप में भेजा गया। जल्द ही अन्य लोगों ने भी फैक्ट्रियां लगा लीं। यह गांव पेंसिल विनिर्माण इकाइयों को 90 प्रतिशत कच्चे माल की आपूर्ति करता है, बाकी 10 प्रतिशत केरल से आता है।


 कोरोना से पहले एक करोड़ था टर्नओवर
 अब 30 लाख मुश्किल से कमा पा रहे
 मंजूर अहमद अलाई ने बताया कि कोरोना से बहुत नुकसान हुआ है। पहले हमारा टर्नओवर एक करोड़ था, जो अब घटकर 30 लाख तक पहुंच गया है। 70 फीसदी घाटा हो रहा है। महामारी से पहले हमारे पास 150 श्रमिक थे और आज 30 फीसदी ही हैं। अलाई ने कहा कि यह हाल केवल उनका ही नहीं, बल्कि पुलवामा में चल रहे सभी 17 पेंसिल स्लैट बनाने वाले कारखानों का है। अलाई ने बताया कि अप्सरा, नटराज, डोम्स जैसी बड़ी कंपनियों को यहीं से कच्चा माल जाता है, जो टॉप माना जाता है। फिर ये कंपनियां पेंसिल बनाकर 83 देशों में निर्यात करती हैं।

40 फीसदी श्रमिक घर लौट चुके
पुलवामा के कारखानों में 40 फीसदी प्रदेश के अन्य जिलों और बाहरी राज्यों के श्रमिक काम करते थे, जिनमें अधिकतर अपने घरों को लौट गए हैं। काम प्रभावित होने से स्थानीय श्रमिकों में से भी आधे से कम हो गए हैं। इन कारखानों में 20 फीसदी महिलाएं काम करती हैं, यहां कई पढ़े-लिखे युवा अपना रोजगार चला रहे हैं, जिन्हें यह डर सता रहा है कि कहीं उनका रोजगार न छिन जाए। सभी दोबारा स्कूल खुलने की दुआ कर रहे हैं। कारखाने में काम करने वाली फायेका ने बताया कि पहले यहां काफी लड़कियां काम करती थीं, लेकिन काम प्रभावित होने से कइयों को रोजगार खोना पड़ा। श्रमिक मुदस्सिर अहमद ने बताया कि पहले जो प्रोडक्शन 300 बैग से ऊपर हो रहा था अब केवल 100 तक आ पहुंचा है। लेबर की बात करें तो 200-250 श्रमिकों की जगह अब यहां 50-60 ही काम कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री भी हैं इस गांव के मुरीद
बता दें कि इस ‘पेंसिल वाला गांव’ ने प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया है। बीते साल मन की बात कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि यह जिला इस बात का उदाहरण है कि आयात पर देश की निर्भरता को कैसे कम किया जाए। मोदी ने कहा था कि एक समय में हम विदेशों से पेंसिल के लिए लकड़ी आयात करते थे, लेकिन अब हमारा पुलवामा देश को पेंसिल बनाने के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना रहा है। मोदी की इस बात से कारोबारियों का काफी हौसला बढ़ा। गृह मंत्रालय की हालिया एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गांव को प्रोडक्शन के लिए एक विशेष क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया कि अब पूरे देश को तैयार पेंसिल की सप्लाई की जाएगी, जो पूरी तरह से पुलवामा में निर्मित होगी, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण काम प्रभावित हो गया है। अब इस गांव और यहां के लोगों को बाजार के फिर से शुरू होने का बेसब्री से इंतजार है।

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