जनप्रतिनिधियों की जागरूकता !

निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को लेकर आम धारणा बन गई है कि एमपी, एमएलए, प्रधान या चेयरमैन चुने जाने के बाद उनका जनमानस से सम्बन्ध टूट जाता है और वे कुछ खास दलाल-चापलूस टाइप के लोगों की चौकड़ी से घिरे रहते हैं। इस धारणा को बनाने में उन लोगों का विशेष हाथ रहता है जो निर्वाचित प्रतिनिधियों से अपेक्षा रखते है कि वे उनके सही-गलत कामों और सिफारिशों को आंख बंद कर मान ले। जो भी है, लोकतान्त्रिक व्यवस्था और वोट बैंक की राजनीति के चलते यह सब जनता व नेताओं को स्वीकार्य है।

कुछ नेता जो सक्रिय राजनीति में रहते हैं, निरंतर जनता या यह कहिये, अपने वोटरों से सदा संपर्क बनाये रखते हैं तथा अपने चुनाव क्षेत्र की छोटी सी छोटी घटना पर नज़र रखते हैं और यही उनकी कामयाबी का राज़ है।

हम इस सन्दर्भ में पुरकाजी विधानसभा क्षेत्र के विधायक अनिल कुमार जी का उल्लेख करना चाहेंगे। अभी दो दिन पूर्व हमने छपार की ऐतिहासिक गढ़ी को तोड़े जाने का समाचार दिया था। विधायक महोदय ने तत्काल इस पर ध्यान दिया और चाहा कि एक प्रार्थनापत्र मुख्यमंत्री जी के नाम प्रेषित करें ताकि वे उसे अपनी टिप्पणी के साथ अग्रसारित कर सकें। प्रार्थनापत्र या शिकायती पत्र भेजना ग्राम प्रधान अथवा ग्रामीणों का कार्य है लेकिन विधायक जी ने इस ओर ध्यान दिया, यह उनके जाग्रत विवेक का परिचायक है। वैसे अनिल कुमार जी के विषय में यह धारणा है कि वे अपने क्षेत्र के हर वर्ग, जाति के लोगों से निकट संपर्क रकते हैं। जन प्रतिनिधियों में यह विशेषता होनी ही चाहिए। चूँकि ऐतिहासिक इमारत का संरक्षण किसी व्यक्तिविशेष का निजी मामला नहीं है अतः चाहे ग्राम प्रधान हों, विधायक हों या जागरूक नागरिक, इस काम में सभी को सहयोग करना चाहिए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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