रामचन्द्र विकल: किसान, मजदूर-पिछड़ों का महानायक !

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान-मजदूर व पिछड़े वर्गों के महानायक तथा गुर्जर गांधी के नाम से विख्यात, सादगी एवं सरलता की प्रतिमूर्ति, रामचन्द्र विकल का 8 नवम्बर 2023 को 107 वाँ जन्म दिवस है। विकल जी का जन्म 8 नवम्बर 1916 में नया गाँव बसन्तपुर, तहसील दादरी (जो अब गौतमबुद्धनगर में है) के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। किशोर अवस्था से ही वे ऋषि दयानन्द सरस्वती के महान् व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आर्य समाज के आदर्शों को जीवन में उतारने वाले निष्काम कर्मयोगी थे।

विकल जी ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के रूप में की। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप स्वदेशी ताना-बाना अख्तियार कर लिया। 1948 में बुलन्दशहर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड (जिला परिषद) सदस्य निर्वाचित होने के साथ राजनीति क्षेत्र में प्रवेश किया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा (1952) के विधायक निर्वाचित हुए। 5 बार विधायक रहे, 2 बार लोकसभा सदस्य व एक बार राज्यसभा के सदस्य रहे।

किसानों, मजदूरों, पिछड़ा समाज के हितों के लिए जीवन भर संघर्ष का प्रण लेकर राजनीति के मैदान में उतरे विकल जी का आबपाशी (सिंचाई दर) कम करने और लगान (भू-राजस्व) ख़त्म करने के प्रश्न पर उत्तर प्रदेश शासन चला रहे नेताओं से मोह भंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर किसान मजदूर पार्टी का गठन किया। इसी दौरान चौधरी चरण सिंह ने 17 विधायकों को साथ लेकर भारतीय क्रान्ति दल का गठन किया। 1967 में उत्तर विधान सभा में संयुक्त विधायक दल राजनीतिक फलक पर उभरा। विकल जी संविद के सर्वसम्मति से नेता निर्वाचित हुए।

विधानसभा में कांग्रेस अल्पमत में चली गई। बहुमत दल का नेता चुने जाने पर श्री विकल को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना था किन्तु उन्होंने मुख्यमंत्री का ताज चौ. चरण सिंह के माथे पर रख दिया। चौधरी साहब मुख्यमंत्री बने और विकल जी उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री। उनके पास कृषि, वन, कारागार, आबकारी तथा सिंचाई जैसे मंत्रालय थे।

मंत्री व जन प्रतिनिधि के रूप में उत्तर प्रदेश, विशेषकर पश्चिमांचल के विकास के लिए विकल जी ने निरन्तर काम किया और सदैव जनहित में संघर्षरत रहे। मार्टिन बर्न कम्पनी की शाहदरा सहारनपुर नैरो गेज लाइन को बड़ी रेलवे लाइन में परिवर्तित कराने के लिए विकल जी ने अतुलनीय संघर्ष किया। फैजाबाद, कानपुर, मेरठ में कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा मेरठ में मेडिकल कालेज खुलने का श्रेय विकल जी को ही जाता है। बुलन्दशहर, दादरी व नोएडा क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालयों से लेकर स्नातकोत्तर विद्यालय तक, सैकड़ों शिक्षा केन्द्र खुलवाये।

यह तो विकल जी के जीवन का संक्षिप्त सा परिचय है। लगभग 50 वर्षों तक विकल जी का प्यार, दुलार, स्नेह पाते हुये मैंने उनके भीतर बैठे सरल किसान व मानवता की सेवा में रत एक निष्काम कर्मयोगी के स्वरूप को देखा है। उनकी सादगी, पिछड़े व गरीबों के प्रति समर्पण भाव की न जाने कितनी घटनायें मन-मस्तिष्क पर तैर रही हैं।

मुझे अत्यन्त पीड़ा व खेद से लिखना पड़ रहा है कि यदि विकल जी राजनीतिक अखाड़े बाज होते, दंद-फंद व तिकड़मों में लगे रहने वाले खुर्राट नेताओं की श्रेणी में होते, तो उनकी स्मृति मे कोई बड़ा स्मारक, विश्व विद्यालय या किसान भवन कभी का बन गया होता। शासन चलाने वालों का, चाहे वे कांग्रेस के हों या सपा-बसपा अथवा भाजपा के, वे श्री रामचंद्र विकल की विलक्षण व अभूतपूर्व सेवाओं के लिए उन्हें मरणोपरान्त पद्म पुरस्कार से नवाजने को सक्रिय होते। ये सिर्फ मेरा ही नहीं अपितु उन लाखों लोगों का विचार है जिन्होंने विकल जी को रात दिन जनसेवा में लगे देखा है।

विकल जी के 107 वें जन्मदिन पर मैं उन्हें बड़ी श्रद्धा से अपने हृदय की अतल गहराइयों के साथ नमन करता हूँ।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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