धर्म स्थानांतरण प्रतिरोध कानून

समाजवादी पार्टी के सदस्यों के हंगामे और भारी विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश विधान परिषद में भी धर्म परिवर्तन प्रतिरोध विधेयक पारित हो गया। विधानसभा में यह पहले ही पास हो चुका था। इस प्रकार प्रलोभन, दबाव, प्रेम संबंधी झांसे या जबरन धर्म परिवर्तन कराना अब उत्तर प्रदेश में कानूनन अपराध हो गया है। इसके दोषी को 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हो सकती है।

समाजवादी पार्टी हो या अन्य कोई भी स्वंयघोषित सेक्युलरवादी दल अथवा व्यक्ति हो ऐसे कानूनों का सख्त विरोध करते हैं जिनसे एक वर्ग विशेष की अराजक गतिविधियों पर अंकुश लगता हो। राष्ट्रद्रोह तथा घोर सांप्रदायिक गतिविधियों में लिप्त लोगों के विरुद्ध जब सामाजिक या कानूनी कार्यवाही होती है तो कथित धर्मनिरपेक्ष तत्व उनकी पैरोकारी में बिना बुलाये खुलकर सामने आ जाते हैं। कोई भूला नहीं है कि सिमी जैसे राष्ट्र विरोधी तथा प्रतिबंधित जनूनी संगठन के सदस्यों के विरोध तत्कालीन समाजवादी सरकार ने मुकदमे वापस लेने की हिमाकत की थी।

समाज में मज़हबी द्वेष फैलाना और दूसरे धर्मावलियों को आतंकित कर मुख्य राष्ट्रीय धारा में अवरोध खड़े करने वालों ने खुद को एकतरफा सेक्युलर, प्रगतिशील एक गंगा-जमुनी संस्कृति का पक्षधर घोषित कर रखा है, जबकि वास्तव में ऐसी कोई संस्कृति भारत में नहीं है। देश में केवल दो संस्कृतियां हैं- पहली भारतीय संस्कृति और दूसरी गैर भारतीय संस्कृति अथवा भारत विरोध की संस्कृति।

भारत के विभाजन से पूर्व ही इस कथित गंगा-जमुनी संस्कृति की नीव हमारे बड़े नेताओं ने डाल दी थी जिसके कारण देश का बंटवारा हुआ। खेद है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते एक फर्जी एवं कल्पित संस्कृति को प्रश्रय दिया जाता रहा है जिसने देश में अनेक समस्यायें पैदा की हुई हैं।

एक संप्रदाय विशेष के युवकों द्वारा दूसरे संप्रदाय की लड़कियों को झांसा देकर धर्म परिवर्तन कराने की घटाएं समय-समय पर सामने आती रहती हैं। कितना विद्रूप है कि जब उत्तर प्रदेश विधानमंडल में धर्म स्थानांतरण विरोध विधेयक को पारित कराने की प्रक्रिया चल रही थी, तभी बरेली जिले के सिमराबोरीपुर ग्राम के आरिफ नामक युवक ने 10वीं कक्षा की एक छात्रा को घसीट कर गन्ने के खेत में ले जाने का असफल प्रयास किया। पुलिस की हालत देखिए कि उसने अपहरण व छेड़छाड़ के मुल्जिम के विरुद्ध कार्यवाही न कर लड़की के बाबा व पिता को ही हवालात में बंद कर दिया। आक्रोशित लोगों ने जब दिया दियोनरिया पुलिस चौकी को घेरा तब चौकी इंचार्ज अमित कुमार ने लड़की के परिजनों को हवालात से छोड़ा। सवाल यह है कि योगी सरकार कानून बना सकती है किंतु उन पर अमल तो अमित कुमार जैसे पुलिसजनों को करना है। जो लोग कथित सेक्युलरवादी सरकारों के दौरान सिफारिश के बल पर, जातीय जुगाड़ या थैली की खनखनाहट के सहारे सिपाही, दरोगा या कोतवाल बने हैं, उन्हें कानून के अनुपालन का सबक कैसे दिया जाए, यह निर्णय तो कानून बनाने वाले ही करेंगे।

गोविंद वर्मा

संपादक ‘देहात’

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