वायदा भूलने पर सिंधु की निंदा

फिरोजपुर के तूड़ी बाजार (शाहगंज मोहल्ला) में बने शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके साथियों के गुप्त ठिकाने को यादगार बनाने का वायदा मंत्री रहते हुए पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिद्धू ने किया था। लेकिन शायद उसे पूरा करना भूल गए।

गौरतलब है कि यह मांग पिछले कई साल से की जा रही है, लेकिन अभी तक किसी भी सियासी दल ने इसे यादगार नहीं बनाया है । इसी इमारत में अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार कर उन्हें देश से खदेड़ा गया था। क्रांतिकारियों के लिए हथियार खरीदने को  अंग्रेजों का खजाना लूटने के लिए भगत सिंह के केश और दाढ़ी भी इसी इमारत में सुखदेव ने काटे थे। ताकि भगत सिंह वेशभूषा बदलकर ट्रेन के माध्यम से बेतिया (बिहार) पहुंच सके।

सांडर्स की हत्या से पहले यहीं होती थी निशानेबाजी
यही नहीं, सांडर्स की हत्या करने से पूर्व एयर पिस्टल से इसी इमारत में बनी रसोई की दीवार पर निशानेबाजी की जाती थी, सांडर्स की हत्या करने के बाद रसोई की दीवार पर छर्रों से बने निशान चाकू से खरोंच दिए गए थे, ताकि पता न चले। इसलिए यहां के लोग इसे यादगार बनाने की पिछले लंबे समय से मांग कर रहे हैं, अफसोस किसी राजनीतिक नेता ने इसे यादगार बनाने के किए वायदे को पूरा नहीं किया। कांग्रेस के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू 15 अगस्त 2017 को फिरोजपुर आए थे और उक्त ठिकाने को यादगार बनाने के लिए अपने निजी खाते से पंद्रह लाख रुपये की ग्रांट देने की घोषणा की थी, जो आज तक नहीं दी गई।
 
खोजी लेखक राकेश कुमार ने लगाया था इस ठिकाने का पता
इस गुप्त ठिकाने की खोज कर तथ्य जुटाने वाले खोजी लेखक राकेश कुमार लंबे समय से इसे यादगार बनाने की मांग कर रहे हैं। पंजाब स्टूडेंट फेडरेशन व नौजवान सभा भी इसे यादगार बनाने के लिए फिरोजपुर में बड़े स्तर पर रोष मार्च कर निकाल चुकी है। पंजाब सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है। भगत सिंह और उनके क्रांतिकारी साथियों ने गुप्त ठिकाना यहां 10 अगस्त 1928 को बनाया था। अंग्रेजों को पता लगने के बाद इसे चार फरवरी 1929 को छोड़ दिया था। यह ठिकाना पार्टी की जरूरत तथा गतिविधियों को ध्यान में रखकर बनाया था। यहां पर भगत सिंह के अलावा चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, शिव वर्मा, विजय कुमार सिन्हा, डॉ. गया प्रसाद, महाबीर सिंह तथा जय गोपाल का आना-जाना था।

इसी ठिकाने से जाते थे दिल्ली और दूसरे शहरों में
क्रांतिकारी पंजाब से दिल्ली, कानपुर, लखनऊ व आगरा आदि जगह आने-जाने के लिए फिरोजपुर में बनाए गए इस गुप्त ठिकाने पर भेष बदलकर ट्रेनों में यात्रा करते थे। इसके अलावा बम बनाने का सामान जुटाने के लिए क्रांतिकारी डॉ. निगम को यहां पर निगम फार्मेसी के नाम पर केमिस्ट शॉप खुलवाई थी। ये पार्टी की आर्थिक सहायता के लिए धनराशि एकत्रित करते थे। अंग्रेजों से बचकर निकलने के लिए इसी गुप्त ठिकाने में शहीद भगत सिंह के केश व दाढ़ी काटे गए थे। इसके अलावा गुप्त ठिकाने से लगभग छह किलोमीटर दूर भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय हुसैनीवाला बॉर्डर स्थित शहीदी स्मारक पर शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव की समाधि बनी है। जहां हर साल 23 मार्च को शहीदी दिवस पर मेला लगता है। यहीं पर शहीद भगत सिंह की माता की भी समाधि है। इसके अलावा बीके दत्त की समाधि भी यहीं पर बनी है।

पुरातत्व विभाग ने नहीं दी एग्रीमेंट की जानकारी
उधर, लेखक राकेश ने बताया कि भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। उक्त गुप्त ठिकाना कृष्णा भक्ति सत्संग ट्रस्ट फिरोजपुर शहर के अधीन है, पुरातत्व विभाग ने दिसंबर 2015 को यादगार बनाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी किया था। उसके बाद ट्रस्ट के चेयरमैन राजिंदर पाल धवन पुत्र बद्रीदास धवन निवासी मोहल्ला लाहौरियां वाला, फिरोजपुर शहर के साथ पुरातत्व विभाग ने एक एग्रीमेंट किया था। राजिंदर पाल का निधन हो चुका है। पुरातत्व विभाग ने उनसे क्या एग्रीमेंट किया है, इसकी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई थी, जो पुरातत्व विभाग ने नहीं दी।
 

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