उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को कहा कि औपनिवेशिक मानसिकता वाले कुछ लोग सनातन के उल्लेख को भ्रम बताकर खारिज कर रहे हैं. उन्होंने दुख जताया कि भारत में सनातन और हिंदू का जिक्र करने मात्र से ‘भ्रमित’ लोगों की तरफ से चौंकाने वाली प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं. उपराष्ट्रपति ने चिंता जताते हुए पूछा कि क्या अज्ञानता इससे भी अधिक चरम पर पहुंच सकती है?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेदांत कांग्रेस को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि यह विडंबना और दुख की बात है कि ‘सनातन और हिंदू का जिक्र’ इस देश में चौंकाने वाली प्रतिक्रियाएं पैदा कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘इन शब्दों के गहरे अर्थ को समझने के बजाय लोग तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं.’
ऐसे तत्वों को बेनकाब करना हर भारतीय का कर्तव्य- धनखड़
जगदीप धनखड़ ने यह भी कहा कि जो लोग शब्दों की गहराई और उनके गहरे अर्थ को समझे बिना ऐसी प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं, वे ‘खतरनाक माहौल’ से प्रेरित होते हैं. उनके गहरे अर्थों को समझने के बजाय लोग आवेगपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं, जैसे कि बात करने के लिए कुछ है. क्या अज्ञानता इससे भी अधिक चरम पर पहुंच सकती है? क्या उनकी चूक की गंभीरता को स्वीकार किया जा सकता है?
उन्होंने कहा, ‘ये वे आत्माएं हैं जिन्होंने खुद को गुमराह किया है, एक खतरनाक पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा संचालित जो न केवल इस समाज को बल्कि खुद को भी खतरे में डालता है.’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे समय में जब वैश्विक विधाएं वेदांत दर्शन को अपना रही हैं, ‘आध्यात्मिकता की इस भूमि पर कुछ ऐसे लोग भी हैं’ जो वेदांत और सनातनी ग्रंथों को ‘प्रतिगामी’ कहकर खारिज कर देते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह अस्वीकृति अक्सर विकृत औपनिवेशिक मानसिकता और हमारी बौद्धिक विरासत की अपर्याप्त समझ से उत्पन्न होती है. ये तत्व व्यवस्थित और कपटी तरीके से काम करते हैं. वे अपने विनाशकारी विचारों को धर्मनिरपेक्षता के विकृत रूप में छिपाते हैं. यह बहुत खतरनाक है. धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल ऐसे कुकृत्यों का बचाव करने के लिए किया जा रहा है. ऐसे तत्वों को बेनकाब करना हर भारतीय का कर्तव्य है.’
अभिव्यक्ति का अधिकार एक दिव्य उपहार- उपराष्ट्रपति
धनखड़ ने कहा कि यह असहिष्णुता हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती है. यह समाज में सद्भाव को बाधित करती है. यह केवल विनाश और विफलता की ओर ले जाती है. संसद में व्यवधान का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अभिव्यक्ति और संवाद जरूरी है. अभिव्यक्ति का अधिकार एक दिव्य उपहार है. इसे किसी भी तरह से कम करना उचित नहीं है और यह हमें दूसरे पहलू की याद दिलाता है, जो संवाद है.
उन्होंने कहा कि अगर आपको अभिव्यक्ति का अधिकार है, लेकिन आप संवाद में शामिल नहीं होते हैं, तो कुछ भी नहीं हो सकता है. इसलिए दोनों एक साथ होने चाहिए. सभ्यता के लिए अभिव्यक्ति और संवाद जरूरी है. धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर (संसद) में भी संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श को व्यवधान और संकट से बाहर लाने की जरूरत है. लेकिन इसे बाधित किया जा रहा है.