आबकारी घोटाला केस में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. सिसोदिया अपनी गिरफ्तारी और रिमांड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. लेकिन जजों ने कहा, "मामला दिल्ली का है, इसका मतलब यह नहीं कि आप सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाएंगे. आपको वैकल्पिक कानूनी उपाय आजमाने चाहिए. आप चाहे तो हाईकोर्ट भी जा सकते हैं."
मनीष सिसोदिया पहुंचे थे सुप्रीम कोर्ट
रविवार को आबकारी घोटाले में मनीष सिसोदिया को 8 घंटे की पूछताछ के बाद सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था. सोमवार को मजिस्ट्रेट ने उन्हें 4 मार्च तक सीबीआई की हिरासत में भेज दिया. इसके खिलाफ मनीष सिसोदिया सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दे दी. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की बेंच के सामने सिसोदिया के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने मामला रखा और सुनवाई का अनुरोध किया.
जजों ने शुरू में ही उन्हें सलाह दी कि यह मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुने जाने लायक नहीं है, लेकिन सिंघवी ने कहा कि वह कई पुराने फैसलों का हवाला देना चाहते हैं, जिससे यह साफ होगा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना चाहिए. उनके अनुरोध को देखते हुए जजों ने कहा कि वह पहले से कोर्ट के सामने लगे मामलों की सुनवाई पूरी होने के बाद इसे सुनेंगे.
शाम को लगभग 4:30 बजे सुप्रीम कोर्ट ने मामला सुनना शुरू किया. अभिषेक मनु सिंघवी ने अरणेश कुमार बनाम बिहार मामले के फैसले का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि सिसोदिया न तो सबूत मिटा रहे थे और न उनके भागने का अंदेशा था. ऐसे में उनकी गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए. सीबीआई का यह कहना भी गलत है कि पूछताछ के दौरान सिसोदिया ने सहयोग नहीं किया. लेकिन जजों ने उन्हें रोकते हुए कहा, "यह बातें सही हो सकती हैं, लेकिन इन्हें आप सीधे सुप्रीम कोर्ट को क्यों बता रहे हैं. आपके सामने दूसरे कानूनी फोरम खुले हुए हैं."
इन मामलों का दिया हवाला
अभिषेक मनु सिंघवी ने इसके बाद अर्णब गोस्वामी और विनोद दुआ मामले में आए फैसलों का हवाला दिया. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह दोनों मामले इस मामले से बिल्कुल अलग हैं. वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े मामले थे, जबकि यह भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज मुकदमा है.
मनीष सिसोदिया वकील ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट मौलिक अधिकारों का संरक्षक है. उसे इस मामले में दखल देना चाहिए. लेकिन जजों ने कहा कि वह जो भी राहत मांग रहे हैं, उसे देने में हाई कोर्ट भी सक्षम है. उन्हें या तो निचली अदालत से जमानत मांगनी चाहिए या अगर वह मुकदमा रद्द करवाना चाहते हैं, तो सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाई कोर्ट में याचिका डालनी चाहिए.
जजों के रुख को देखते हुए सिंघवी ने प्रयास किया कि सुप्रीम कोर्ट यह आदेश में लिखें कि उन्हें मामला वापस लेकर हाई कोर्ट जाने की अनुमति दी जा रही है. लेकिन जजों ने ऐसा आदेश नहीं दिया. चीफ जस्टिस ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट नहीं सुनेगा. याचिकाकर्ता जो भी दूसरे कानूनी विकल्प अपनाना चाहता है, वह उस पर खुद विचार करें.