नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में चली भाजपा की लहर में आम आदमी पार्टी के कई मजबूत किले ढह गए, लेकिन अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीटों ने उसकी लाज बचा ली। दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों में आठ में आप प्रत्याशी विजयी हुए हैं जबकि चार सीटें भाजपा प्रत्याशियों ने जीते हैं। इससे दिल्ली की राजनीति का वह मिथक टूट गया है कि जो ज्यादा आरक्षित सीटें जीतेगा, वही सत्ता में पहुंचेगा।

भाजपा ने तोड़ा मिथक

वर्ष 1993 में दिल्ली को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से देखा गया है कि जिस दल ने यहां की 12 आरक्षित सीटों में सभी या ज्यादा सीटें जीती, उसी की सरकार बनी। 2020 तक यही स्थिति रही। इस बार भाजपा ने इस मिथक को तोड़ दिया है। 2011 की जनगणना के हिसाब से वर्तमान में वंचित वर्ग के मतदाताओं की संख्या 18 से 20 प्रतिशत आंकी जाती है।

वंचित वर्ग में बनी भाजपा की पैठ

12 आरक्षित सीटों के साथ 18 अन्य विधानसभा सीटों पर भी उनका गहरा प्रभाव रहता है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में यह वर्ग आप का प्रमुख वोट बैंक रहा, उससे पहले यह कांग्रेस के साथ था। अभी तक भाजपा की इस वर्ग में कभी मजबूत पहुंच नहीं बन पाई थी। इस बार भाजपा ने न सिर्फ आरक्षित सीटों को लेकर बने मिथक को तोड़ा, बल्कि वंचित वर्ग में भी अपनी पैठ बना ली। यह आप के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी बड़ी चिंता का विषय है।

आरक्षित सीटें: सुल्तानपुर, बवाना, करोलबाग, मंगोलपुरी, मादीपुर, पटेलनगर, आंबेडकरनगर, देवली, त्रिलोकपुरी, कोंडली, सीमापुरी और गोकुलपुर।

कौन-कहां जीता

आप: सुल्तानपुर माजरा, करोलबाग, पटेलनगर, अंबेडकर नगर, देवली, कोंडली, सीमापुरी, गोकुलपुरी।

भाजपा: बवाना, मंगोलपुरी, मादीपुर, त्रिलोकपुरी।

          आरक्षित सीटों के मामले में कब-कब किस दल की क्या रही स्थिति 

वर्षपार्टीजीती सीटों की संख्याकिसकी बनी सरकार
1993भाजपा08भाजपा
1998कांग्रेस12कांग्रेस
2003कांग्रेस10कांग्रेस
2008कांग्रेस09कांग्रेस
2013आप09आप
2015आप12आप
2020आप12आप
2025आप08आप