श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में प्रशासनिक तंत्र में छिपे बैठे आतंकियों, अलगाववादियों और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शनिवार को चार और सरकारी कर्मियों को नौकरी से निकाल दिया। इनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल हैं, जो आतंकियों के लिए हथियारों की आपूर्ति करने के अलावा जैश और हिजबुल मुजाहिदीन के लिए बतौर ओवरग्राउंड वर्कर (मददगार) काम करते थे।

इसके साथ ही एक अन्य सरकारी अध्यापक है, जिसने जुलाई 2016 में कुलगाम में एक पुलिस स्टेशन को आग लगाने और पुलिसकर्मियों के हथियार लूटने वाली भीड़ का नेतृत्व किया था। उपराज्यपाल के नेतृत्व में प्रदेश प्रशासन बीते पांच वर्ष में 55 सरकारी अधिकारियों व कर्मियों को आतंकी व अलगाववादी गतिविधियों में संलिप्तता के आधार पर सेवामुक्त कर चुका है। इनमें डीएसपी देवेंद्र सिंह भी शामिल है, जो वर्ष 2020 में हिजबुल के आतंकी नवीद के साथ पकड़ा गया था।

चार सरकारी कर्मियों को किया सेवामुक्त

जम्मू-कश्मीर पुलिस सेवा का एक अधिकारी आदिल मुश्ताक भी आतंकियों की मदद के आरोप में निलंबित है। आदिल ने वर्ष 2023 को 31.65 लाख रुपये की नकदी के साथ पकड़े गए लश्कर के तीन मददगारों उमर, बिलाल और सालिक के खिलाफ जांच में साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की थी। शनिवार को सेवामुक्त किए गए चार सरकारी कर्मियों में जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो कांस्टेबल अब्दुल रहमान डार और गुलाम रसूल बट के अलावा जलशक्ति विभाग में सहायक लाइनमैन अनायतुल्ला शाह पीरजादा और सरकारी शिक्षक शब्बीर अहमद वानी शामिल हैं।

इन सभी को खुफिया एजेंसियों की विस्तृत जांच के बाद उपराज्यपाल ने सरकारी सेवा से मुक्त किया है। ये सभी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों के लगातार संपर्क में थे। इनके खिलाफ हिंसा, आतंकियों की मदद करने के मामलों की अदालत में सुनवाई भी जारी है।

आतंकियों के लिए सुरक्षाबलों की वर्दियों का करते थे बंदोबस्त

अधिकारियों ने बताया कि कांस्टेबल अब्दुल रहमान डार और गुलाम रसूल बट दोनों जिला पुलवामा के त्राल के रहने वाले हैं और दोनों आपस में दोस्त भी हैं। ये दोनों बड़गाम में पुलिस लाइन में तैनात रहते हुए आतंकियों के लिए हथियार व गोलाबारूद के अलावा सुरक्षाबलों की वर्दियों का भी बंदोबस्त करते थे। अब्दुल रहमान डार आतंकी संगठन अल बदर के लिए कैडर भी जुटाता था। गुलाम रसूल बट बड़गाम में पुलिस के शस्त्रागार में तैनात था और वह अब्दुल रहमान के जरिये वहां से आतंकियों के लिए हथियार का प्रबंध करता था।

आतंकियों के लिए साल 2002 में पुलिस में हुआ भर्ती

आतंकियों के लिए हथियार व कैडर जुटाने वाला अब्दुल रहमान डार साल 2002 में पुलिस में भर्ती हुआ था। दक्षिण कश्मीर में आतंकियों की नर्सरी से कुख्यात त्राल, पुलवामा के रहने वाले अब्दुल रहमान डार को ट्रेनिंग के बाद पहले श्रीनगर में और उसके बाद करगिल में तैनात किया गया था। साल 2009 में उसे बडगाम में तैनात किया गया।

कारगिल से लौटने के बाद आतंकियों से बढ़ाया संपर्क

उसे वर्ष 2004-05 के दौरान इसलिए कारगिल भेजा गया था क्योंकि वह जैश, लश्कर ,हिजब जैसे आतंकियों और प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के प्रभाव वाले त्राल का रहने वाला था और उक्त क्षेत्र के पुलिसकर्मी किसी तरह से आतंकियों के प्रभाव में न आएं। वह जैश ओ हिजब के ओवरग्राउंड वर्कर नेटवर्क से जुड़ा हुआ था और उसने कारगिल से लौटने के बाद इस नेटवर्क के साथ अपना संपर्क फिर बढ़ाया और आतंकियों के लिए काम करने लगा।

स्कूल में छात्रों को जिहादी भाषण देता था वानी

कुलगाम का रहने वाला शब्बीर अहमद वानी शिक्षा विभाग में बतौर शिक्षक नियुक्त होने के बावजूद प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी का एक सक्रिय सदस्य है। वह हिजबुल के नेटवर्क के साथ भी जुड़ा था। उसने दक्षिण कश्मीर में आतंकी संगठन और जमात को मजबूत बनाने में मुख्य भूमिका निभाई। वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान के मारे जाने के बाद कुलगाम और शोपियां में उसने हिंसक प्रदर्शनों में अहम भूमिका निभाई।

उसने ही दम्हाल हांजीपोरा पुलिस स्टेशन के अलावा कोर्ट परिसर पर हमला व आगजनी करने वाली भीड़ का नेतृत्व किया था। थाने पर हमले के दौरान कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे और भीड़ ने हथियार लूटे थे। उसने एक सैन्य शिविर पर भी भीड़ को हमले के लिए उकसाया था, लेकिन सैन्यकर्मियों ने भीड़ को खदेड़ दिया था। उसके खिलाफ विभिन्न मामले दर्ज हैं। वह स्कूल में अक्सर छात्रों को जिहादी भाषण देता था।

आतंकियों को एलओसी पार कराता था पीरजादा

बारामूला का रहने वाला अनायतुल्ला शाह पीरजादा सहायक लाइनमैन था। वह प्रतिबंधित आतंकी संगठन अल बदर मुजाहिदीन का ओवरग्राउंड वर्कर था। वह गुलाम जम्मू-कश्मीर से आने वाले आतंकियों को एलओसी पार कराकर कश्मीर में सुरक्षित पहुंचाने के लिए गाइड की भूमिका निभाता था। वह उनके लिए हथियार और ठिकानों का बंदोबस्त था। वह कश्मीर में सक्रिय रहे अल बदर कमांडर यूसुफ बलोच के साथ सीधे संपर्क में था। यूसुफ बलोच वर्ष 2000 में वापस पाकिस्तान भाग गया था और अब वहीं से कश्मीर में अल बदर की गतिविधियों का संचालन कर रहा है।