दिग्विजय के पूर्वज थे ब्रिटिश शासकों के गुलाम

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच छिड़ी जुबानी जंग में मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर भी शामिल हो गए हैं। तोमर ने मंगलवार को कहा कि खुद जिनके परिवार का इतिहास कदम-कदम पर गद्दारी, विश्वासघात व अंग्रेजों की चापलूसी में रंगा-पुता हो, उन्हें सिंधिया जैसे देशभक्त व जनसेवी परिवार पर उंगली उठाने का कतई हक नहीं है। उन्होंने कहा कि खुद दिग्विजय सिंह अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ साजिश बुनते रहे, जबकि अतीत में दिग्विजय के पिता व पूर्वज अंग्रेजों से हाथ मिलाकर सिंधिया परिवार को नुकसान पहुंचाकर राघौगढ़ का राजपाठ बचाते रहे हैं।

तोमर ने कहा कि इतिहास झूठ नहीं बोलता। राघौगढ़ के राजा शुरू से अंग्रेजों के भक्त रहे। 1775 से 1782 तक राघौगढ़ के राजा बलभद्र सिंह को मराठों से विश्वासघात करने पर सिंधिया शासकों ने ग्वालियर किले में कैद किया था। इसी परिवार के राजा जयसिंह ने राघौगढ़ को बचाने के लिए देश से गद्दारी की और अंग्रेजों का साथ दिया था। दिग्विजय सिंह के पूर्वज ब्रिटिश शासकों के हिमायती रहे। उन्होंने महादजी सिंधिया से भी गद्दारी की थी। 

तोमर ने कहा कि सिंधिया परिवार सिर्फ अपने देश और जनता के लिए जीता रहा। महान सिंधिया शासकों ने मुगलों से अंग्रेजों तक से संघर्ष किया। आजादी से पहले अधिकांश सिंधिया शासकों ने देश के शत्रुओं से लड़ते हुए युद्धभूमि में ही बलिदान दिया है न कि राघौगढ़ के राजाओं की तरह प्रत्येक कालखंड में अंग्रेजों के साथ मिलकर सत्ता-सुख भोगा है। 

तोमर ने कहा कि दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह ने अपने वंश और अंग्रेज भक्ति का वर्णन करते हुए 16 सितंबर 1939 को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने लिखा कि ‘मेरे पूर्वजों ने 1779 से ब्रिटिश सरकार को भरपूर सेवाएं प्रदान की हैं। मेरे पिताजी ने भी आपको निजी सेवा प्रदान की है। पिछले युद्ध के समय भी ब्रिटिश सरकार को राघोगढ़ ने सेवा दी है। अब मैं आपको अपनी वफादारी से भरी सेवा देना अपना धर्म समझता हूं।’ तोमर के मुताबिक यह पत्र 2002 में भोपाल में राजकीय अभिलेखागार और पुरातत्व विभाग की प्रदर्शनी में रखा गया था। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने पत्र गायब करवा दिया था।  

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