कानूनी विवाद में उलझे श्री दिगंबर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट की जमीन पर बनी दुकानों का किराया वसूल करने के लिए ट्रस्ट ने अब सख्ती अपनाने की तैयारी की है। अब शासन की राजस्व वसूली की शक्तियों का उपयोग करते हुए दुकानों का किराया वसूल किया जाएगा। यदि दुकानदारों ने तय किराया ट्रस्ट में जमा नहीं किया तो दुकान की कुर्की तक की जा सकती है। ट्रस्ट में न्यासी और प्रबंधक के रूप में नियुक्त एसडीएम अंशुल खरे ने इस संबंध में आदेश जारी किया है। ट्रस्ट के रिसीवर की हैसियत ने उन्होंने नायब तहसीलदार रीतेश जोशी को ट्रस्ट की संपत्ति की निगरानी के लिए नियुक्त किया।

रिसीवर ने नायब तहसीलदार को आदेश किया है कि वे ट्रस्ट के तहत चलने वाली सभी गतिविधियों और ट्रस्ट के नियमों का पालन कराएंगे। ट्रस्ट की सभी आय-व्यय के लेखा और आडिट रिपोर्ट की भी निगरानी की जाएगी। नायब तहसीलदार द्वारा ट्रस्ट की सभी संपत्ति का रखरखाव किया जाएगा और किराए पर दी गई दुकानों का भाड़ा भी वसूला जाएगा। जो दुकानदार ट्रस्ट काे दुकान का किराया नहीं देंगे, उनसे सख्ती के साथ किराया वसूल किया जा सकेगा।

एसडीएम व रिसीवर ने आश्रम ट्रस्ट के कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए की गई कार्रवाई पर हर महीने नायब तहसीलदार से रिपोर्ट भी बुलाई है। उल्लेखनीय है कि इस ट्रस्ट का गठन वर्ष 1921 में हुआ था। यह कासलीवाल परिवार का ट्रस्ट है जिसकी स्थापना सर सेठ हुकुमचंद, उनके भाई हीरालाल कासलीवाल और देवकुमार कासलीवाल द्वारा किया गया था। ट्रस्ट के नियमों के अनुसार बाद में भी इन्हीं तीन भाइयों के वंशज ट्स्ट में ट्रस्टी के रूप में आते रहे।

इस धार्मिक ट्रस्ट द्वारा कुंद-कुंद ज्ञानपीठ शोध संस्थान चलाया जाता है। यहां प्राकृत भाषा के ग्रंथों की लाइब्रेरी भी है। यहां जैन ब्रह्चारियों के लिए ठहरने और भोजन की व्यवस्था भी है। कुछ साल पहले ट्रस्टियों के बीच विवाद के बाद रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट को शिकायत की गई। बाद में यह मामला सिविल काेर्ट पहुंच गया। वर्ष 2014 से कोर्ट ने सभी ट्रस्टियों को हटाकर इसमें एसडीएम को रिसीवर नियुक्त किया हुआ है।