पंजाब और हरियाणा के बीच भाखड़ा डैम के पानी को लेकर टकराव और तेज हो गया है। केंद्र सरकार के निर्देशों के बावजूद, पंजाब ने लगातार दूसरे दिन हरियाणा को 4500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी मुहैया नहीं कराया। रविवार को यह मुद्दा और भी गर्मा गया क्योंकि आज (सोमवार) सुबह 11 बजे पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है, जिसमें अतिरिक्त पानी देने के खिलाफ प्रस्ताव लाया जा सकता है। माना जा रहा है कि इस प्रस्ताव को सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के साथ-साथ विपक्ष का भी समर्थन मिल सकता है।
दूसरी ओर, हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की तैयारी में है। हालांकि, वह पंजाब विधानसभा के प्रस्ताव और कानूनी सलाह के बाद ही अंतिम कदम उठाएगी। इस मुद्दे पर रविवार को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बीच चर्चा हुई। मुख्यमंत्री ने पंजाब की स्थिति और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं से मंत्री को अवगत कराया। संभावना है कि केंद्र सरकार अब नंगल डैम (भाखड़ा कंट्रोल रूम) का नियंत्रण भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) को सौंपने के लिए पंजाब पर सख्त कदम उठा सकती है।
BBMB पहले ही हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने की सिफारिश कर चुका है। दो मई को दिल्ली में हुई बैठक में केंद्र ने पंजाब को सुझाव दिया था कि वह BBMB के निर्देशों के अनुसार हरियाणा को पानी दे। साथ ही, केंद्र ने नंगल डैम पर पंजाब पुलिस की तैनाती पर आपत्ति जताते हुए इसे हटाने की बात भी कही थी। लेकिन रविवार शाम तक पंजाब सरकार ने डैम का नियंत्रण नहीं छोड़ा।
पंजाब सरकार का कहना है कि वह पहले से ही हरियाणा को 4000 क्यूसेक पानी दे रही है और 8500 क्यूसेक की मांग अनुचित है। उनका दावा है कि अतिरिक्त पानी केवल सिंचाई के लिए मांगा जा रहा है।
इस बीच, हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसवाईएल (सतलुज-यमुना लिंक) नहर के मामले को आधार बनाकर पानी की मांग को लेकर कानूनी कार्रवाई की तैयारी कर रही है। वकीलों की टीम ने इससे संबंधित पुराने फैसलों को भी तैयार कर लिया है, जिनमें कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में निर्णय दिया था लेकिन पंजाब ने अभी तक आदेशों को लागू नहीं किया।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, हरियाणा के पास प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग करने का भी विकल्प है। संविधान के अनुच्छेद 257 के तहत प्रधानमंत्री राज्यों के बीच विवाद सुलझाने के लिए विशेष अधिकार रखते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में मामला ले जाने से पानी की आपूर्ति में देरी हो सकती है, इसलिए यह वैकल्पिक मार्ग अधिक प्रभावी हो सकता है।