राजस्थान में राजनीतिक सरगर्मी एक बार फिर बढ़ सकती है। पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की मुलाकात के बाद इसकी चर्चा फिर शुरू हो गई है। गुरुवार को दोनों नेताओं के बीच हुई मुलाकात के सियासी मायने भी निकाले में निकाले जाने लगे हैं। उधर, सचिन पायलट गुजरात चुनाव में भी एक्टिव होते दिखाई दे रहे हैं। 31 अक्टूबर को पायलट गुजराज के अहमदाबाद में जनसभा से इसकी शुरुआत करने वाले हैं।
मल्लिकार्जुन खरगे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गुरुवार 27 अक्टूबर को सचिन पायलट ने उनसे मुलकात की। बताया जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच राजस्थान के सियासी हालात और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के समीकरणों को लेकर चर्चा हुई। इस दौरान पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष के सामने संगठन के पदों पर नियुक्ति नहीं होने को लेकर भी चर्चा की।राजस्थान में सचिन पायलट सिर्फ विधायक की भूमिका में हैं। सरकार के किसी भी कार्यक्रम में वह शामिल नहीं होते हैं या कहें कि उन्हें बुलाया नहीं जाता है। पायलट वर्तमान में हिमाचल प्रदेश स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य हैं और यहां पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक भी बनाया है। ऐसे में खरगे ने पायलट से हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तैयारियों और वहां के हालात को लेकर भी जानकारी ली। इधर, कांग्रेस अध्यक्ष खरगे से मुलाकात के बाद राजस्थान में सचिन पायलट की भूमिका को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे हैं। दरअसल, सचिन पायलट के विरोध में गहलोत गुट के खड़े होने के बाद हालात असामान्य हो गए थे। नए मुख्यमंत्री के नाम की चर्चा करने आए पर्यवेक्षकों को भी विधायकों से बात किए बिना ही वापस जाना पड़ा था। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी एक बार फिर पर्यवेक्षक भेज सकती है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बीच मामला टल गया। अब खरगे और पायलट की मुलाकात के बाद एक बार फिर पर्यवेक्षक भेजने की चर्चा शुरू हो गई है। ऐसे में माना जा रहा है राजस्थान में पायलट की भूमिका पर आलाकमान जल्द फैसला ले सकता है।
विधानसभा चुनाव से पहले विवाद सुलझाना चाहती है कांग्रेस
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राजस्थान में गहलोत और पायलट गुट की अदावत को पार्टी आलाकमान 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले हर हाल में सुलझाना चाहता है। साथ ही जल्द से जल्द पायलट की भूमिका भी तय करना चाहता है। जिससे लोगों के बीच संदेश जाए कि पार्टी में युवाओं को आगे आने का मौका मिल रहा है। चुनाव से पहले गहलोत और पायलट का टकराव खत्म होता है तो लोगों के बीच पार्टी एकजुट होने का संदेश भी जाएगा, जिसका चुनाव में पार्टी को लाभ मिल सकता है।
प्रदेश में सरकार रिपीट कराने पर फोकस
राजस्थान में बीते कई विधानसभा चुनाव से एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनती आ रही है। हर चुनाव में प्रदेश की सत्ता विपक्षी पार्टी के हाथ में चली जाती है, लेकिन इस बार कांग्रेस आलाकमान का पूरा फोकस इस बात पर है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार रिपीट हो। बता दें कि फिलहाल कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सत्ता है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात में जल्द ही चुनाव होना है, अगर कांग्रेस यहां अच्छा प्रदर्शन करती है या सरकार बनाती है तो इसका फायदा अगले साल होने वाले चुनावी राज्यों में भी मिल सकता है।
कब हुआ था विवाद?
गौरतलब है कि 25 सितंबर को कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने नए मुख्यमंत्री के नाम पर चर्चा करने के लिए विधायक दल की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में शामिल होने की जगह विधायक मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के आवास पर जुट गए थे। जहां गहलोत गुट के मंत्री और विधायकों ने सचिन पायलट के सीएम बनाए जाने का विरोध किया था। बाद में विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के आवास पर पहुंचकर इस्तीफा दे दिया था।