इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान समर्थक टिप्पणी से जुड़े मामले में आरोपी युवक को राहत देते हुए जमानत मंजूर कर दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी दूसरे की पोस्ट को महज फॉरवर्ड या रिपोस्ट करना सीधे तौर पर राष्ट्र-विरोधी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
न्यायमूर्ति संतोष राय की पीठ ने मेरठ के परीक्षितगढ़ क्षेत्र के साजिद चौधरी की अर्जी पर यह फैसला सुनाया। याची पर आरोप था कि उसने एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा था – “कामरान भट्टी, मुझे आप पर गर्व है, पाकिस्तान जिंदाबाद।” इस पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर युवक को जेल भेज दिया था। सत्र न्यायालय से जमानत अर्जी खारिज होने के बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अदालत ने कहा कि किसी सोशल मीडिया संदेश को अपराध की दृष्टि से परखने के लिए यह देखना आवश्यक है कि एक सामान्य और समझदार व्यक्ति उसे किस तरह लेगा, न कि कमजोर मानसिकता से। कोर्ट ने टिप्पणी की कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान की रीढ़ है और इसका संरक्षण जरूरी है।
अपने आदेश में पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सोशल मीडिया पर किसी नागरिक की अभिव्यक्ति को अपराध मानने से पहले उसे ठोस कसौटियों पर परखना चाहिए।
सुनवाई के दौरान अदालत ने जेलों की स्थिति पर भी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश की जेलों में क्षमता से कई गुना अधिक कैदी बंद हैं। ऐसे में विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक हिरासत में रखना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने इन परिस्थितियों को देखते हुए सशर्त जमानत मंजूर कर ली।