प्रदेश में गैरकानूनी धर्मांतरण के मामलों में विदेशी आर्थिक मदद की कड़ियाँ भगोड़े इस्लामी प्रचारक जाकिर नाईक तक पहुँचती दिख रही हैं। इस पूरे मामले की पड़ताल में अब केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के साथ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी सक्रिय हो गई है। शुरुआती जांच में सामने आया है कि इस फंडिंग नेटवर्क के पीछे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसे प्रतिबंधित संगठनों के कुछ पूर्व पदाधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।
फिलहाल ईडी इस मामले की तह तक पहुँचने के लिए गहनता से मनी ट्रेल की जांच कर रही है। राज्य एटीएस भी विदेशी स्रोतों से हो रही आर्थिक गतिविधियों को गंभीरता से खंगाल रही है।
बलरामपुर से मिला था सुराग, नेपाल सीमा पर हो रहा है नेटवर्क सक्रिय
बलरामपुर जिले में अवैध धर्मांतरण से जुड़े एक नेटवर्क का संचालन करने वाले जमालुद्दीन उर्फ छांगुर को विदेशी संस्थानों से आर्थिक सहायता प्राप्त होने के प्रमाण मिले थे। इसी तरह आयकर विभाग ने फरवरी में नेपाल सीमा के पास कार्रवाई कर मस्जिदों, मदरसों और मजारों के निर्माण में इस्तेमाल हो रही धनराशि की भी जांच की थी। रिपोर्टों के अनुसार, यह फंड दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के माध्यम से नेपाल सीमा से सटे जिलों तक पहुँचाया जा रहा था।
इन गतिविधियों में संयुक्त अरब अमीरात, तुर्किये, दुबई, कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन की कुछ इस्लामी संस्थाओं की संलिप्तता सामने आई है। माना जा रहा है कि इनका उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी का घनत्व बढ़ाने की रणनीति से जुड़ा हो सकता है। गृह मंत्रालय को सौंपे गए विस्तृत रिपोर्ट के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं और फंडिंग के स्रोतों की निगरानी तेज कर दी गई है।
धर्मांतरण मामलों में विवादित रहा है जाकिर नाईक
इस पूरे मामले में जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है जाकिर नाईक। उसकी संस्था 'इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन' पर पहले ही प्रतिबंध लग चुका है। भारत में कानूनी शिकंजा कसने के बाद नाईक मलेशिया भाग गया था, लेकिन वहां से भी वह सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के ज़रिए कथित तौर पर युवाओं को धार्मिक रूपांतरण के लिए प्रेरित करता रहा है।