लखनऊ/प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में कर विभाग से जुड़ी एक गहन जांच के बीच विभाग के कुछ अधिकारियों पर गंभीर आरोप उठे हैं कि उन्होंने अपनी अघोषित आय छिपाने के लिए मिर्जापुर, सोनभद्र और अन्य स्थानों में खनिज-सम्पन्न पहाड़ खरीद लिए। मामले में अब अंबेडकरनगर के एक बिल्डर के जरिए जमीनों की खरीद-फरोख्त की जांच भी तेज हो गई है और कई बड़े अधिकारियों का नाम जांच के दायरे में बताया जा रहा है।

पिछले कुछ वर्षों में लागू आर्थिक घटनाक्रम—नोटबंदी, जीएसटी का कार्यान्वयन और कोरोना महामारी—के बाद राजस्व तंत्र में जो व्यवधान आए, उनका गलत लाभ उठाकर कथित रूप से सहज-शक्त में कमाई की गई; अधिकारियों के अनुसार, उस कालखंड में होने वाली 'अकूत कमाई' को व्यवस्थित रूप से छिपाने के प्रयास किए गए। जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कुछ अधिकारियों ने स्थानीय खनिज-सम्पन्न पहाड़ों को खरीदकर उन पर नियंत्रित खनन और रॉयल्टी के सन्दर्भ में प्रभावी पकड़ बनाई।

सूत्रों का दावा है कि सोनभद्र में मौजूद डोलोस्टोन और लाइमस्टोन, तथा मिर्जापुर में पाए जाने वाले सैंडस्टोन—इन संसाधनों की कीमतों में संदेहास्पद उछाल आया। जहाँ पहले डोलोस्टोन का परम्परागत रेट लगभग 160 रुपये प्रति घन मीटर था, वहीं अब टेंडर प्रक्रियाओं में यह कई गुना बढ़कर 3,000 रुपये प्रति घन मीटर तक पहुँचा बताया जा रहा है। इसी तरह सैंडस्टोन की रॉयल्टी भी ई-टेंडर के लागू होने के बाद 110 रुपये से बढ़कर 400-1,000 रुपये प्रति घन मीटर तक देखी गई।

जांच के दौरान यह भी पता चला है कि कुछ स्थल साल भर के बहुत पहले ही खनन की अनुमति (सरेंडर) कर देते हैं, जिससे औपचारिक रॉयल्टी के नाम पर बड़े दायरे में धन के प्रवाह को वैध ठहराने के जरिये अघोषित रकम को 'सफेद' करने की संभावनाएं बनती हैं। एक अनुमान के मुताबिक, एक पहाड़ की वार्षिक रॉयल्टी का औसत 20 से 30 करोड़ रुपये तक जा सकता है, जिससे इस कारोबारी संरचना के माध्यम से बड़े स्तर पर धन के हेरफेर की गुंजाइश बनती है।

विभागीय सूत्रों ने बताया कि आरोप लगने वाले गुट ने स्थानीय बिल्डरों को ढाल के रूप में उपयोग किया और पूर्वांचल के पहाड़ों में भारी मात्रा में पैसा लगा कर उसे कानूनी तौर पर दिखाने के प्रयास किए। जांच अब स्थानीय संपत्ति रजिस्ट्री, ई-टेंडर रिकॉर्ड और रॉयल्टी भुगतान के हिसाब-किताब पर केन्द्रित है।

प्रशासनिक रेकॉर्ड और प्राथमिक दस्तावेजों की पड़ताल जारी है। फिलहाल विभागीय अधिकारियों और संबंधित बिल्डर से टिप्पणी नहीं मिल पाई है; जांच अधिकारियों ने मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करने से परहेज किया है।

जांच के अगले चरण में रजिस्ट्रार कार्यालयों, खनन तंत्र और वित्तीय प्रवाह से जुड़ी बैंकिंग रेकॉर्ड्स की छानबीन और संदिग्ध लेनदेन के स्रोतों का पता लगाने पर विशेष जोर रहेगा। मामले की गंभीरता देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार तथा राजस्व विभाग ने उच्चस्तरीय जांच टीम गठित करने तथा आवश्यक कानूनी कार्रवाई की संभावना जताई है।