आगरा के कोठी मीना बाजार की जिस हवेली में छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद रखा गया, उसे शिवाजी स्मारक बनाने का सपना अब साकार हो सकता है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए आगरा दक्षिण के विधायक योगेंद्र उपाध्याय ने तीन साल पहले यह मुद्दा उठाया था। 

कैबिनेट मंत्री बनने के बाद लखनऊ से उन्होंने विशेष बातचीत में कहा कि शिवाजी स्मारक और एसएन मेडिकल कॉलेज को एम्स का दर्जा दिलाने, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने के सपने को साकार करेंगे। स्मारक और एसएन मेडिकल कॉलेज का मामला उनके दिल से जुड़ा हुआ है। गंगाजल की तरह इन दोनों कार्यों को वह अंजाम तक पहुंचाएंगे।

इन्होंने किया था शोध 
मुगलिया राजधानी रहे आगरा में छत्रपति शिवाजी को कैद करने के मामले में इतिहास संकलन समिति के प्रोफेसर सुगम आनंद और स्वर्गीय डॉ. अमी आधार निडर ने शोध किया था, जिसमें उन्होंने कोठी मीना बाजार पर हवेली में शिवाजी को नजरबंद करने का दावा किया था। 

इसी हवेली में कैद रहे थे शिवाजी महाराज

इसी शोध के आधार पर विधायक योगेंद्र उपाध्याय ने चार जून, 2020 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर प्रत्यावेदन सौंपा , जिस पर 19 जून, 2020 को मुख्यमंत्री ने म्यूजियम बनाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद प्रशासन द्वारा जमीन का सर्वे कराया गया।

स्मारक का ये है प्रस्ताव

कोठी मीना बाजार में 100 फुट ऊंची घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा स्थापित की जाए और एक ऑडिटोरियम हॉल बनाकर उसमें शिवाजी महाराज के शौर्य, साहस, कुशल योजना पर आधारित कहानी को लाइट एंड साउंड शो के जरिये दिखाया जाए। जयपुर रोड पर यह स्मारक पर्यटकों को लुभाएगा। इस मामले में बीते साल 12 अगस्त को डीएम प्रभु एन सिंह की अध्यक्षता में बैठक भी हो चुकी है, जिसमें कोठी को संरक्षित करने का प्रस्ताव रखा गया था। 

12 मई 1666 को नजरबंद हुए थे शिवाजी

शोध के दावे के मुताबिक 12 मई, 1666 को शिवाजी को राजा जयसिंह के बेटे राम सिंह की छावनी के निकट फौलाद खां की निगरानी में औरंगजेब द्वारा नजरबंद किया गया था। राम सिंह की छावनी के निकट स्थित फिदाई हुसैन की शहर के बाहर टीले पर स्थित हवेली में शिवाजी को रखा गया। जयपुर म्यूजियम में रखे आगरा के नक्शे के अनुसार राम सिंह की हवेली कोठी मीना बाजार के नजदीक थी। 

अभिलेखों में यह जगह आज भी कटरा सवाई राजा जयसिंह के नाम से दर्ज है। 1803 में हवेली अंग्रेजों के कब्जे में आई, जिसके पुराने जर्जर भवन को तोड़कर वर्ष 1837 में नई कोठी बनाई गई, जिसे गर्वनर हाउस कहा गया। 1857 तक यह अंग्रेजों की संपत्ति रही। बाद में नीलामी में इसे राजा जयकिशन दास ने खरीदा।