उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में समाहित करने के निर्णय का समाजवादी पार्टी ने विरोध किया है। पार्टी का आरोप है कि यह कदम गरीब बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है, जो सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं।
सरकार के इस निर्णय के विरोध में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आह्वान पर ‘पीडीए पाठशाला’ की शुरुआत की गई है। अमेठी के भादर ब्लॉक स्थित इस्माइलपुर गांव में दो दर्जन से अधिक बच्चों के साथ इस वैकल्पिक कक्षा की शुरुआत की गई, जहां सपा नेता जय सिंह यादव ने स्वयं बच्चों को पढ़ाया।
जहां स्कूल बंद, वहीं समाजवादी पाठशाला
समाजवादी पार्टी का कहना है कि सरकार जिन-जिन विद्यालयों को मर्ज करेगी, वहां-वहां पार्टी की ओर से समाजवादी पाठशाला चलाई जाएगी। अमेठी में पाठशाला की शुरुआत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया।
उन्होंने कहा, “हर चीज को मुनाफे के चश्मे से देखने वाली भाजपा यह समझे कि शिक्षा लाभ-हानि के तराजू पर नहीं तोली जा सकती। पीडीए समाज के युवाओं द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से पाठशाला की संकल्पना को साकार करना सराहनीय है।"
शिक्षा का अधिकार छीना नहीं जाएगा: अखिलेश
अखिलेश यादव ने कहा कि शिक्षा और प्रतिभा को बढ़ावा देना समाजवादी पार्टी की प्राथमिकता रही है। उन्होंने बताया कि कई गांवों में युवा साइकिलों पर किताबें लेकर बच्चों को पढ़ाने के लिए निकल चुके हैं, और उनकी तस्वीरें सामने आने लगी हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि, “अगर भाजपा सरकार के पास स्कूलों के संचालन के लिए बजट नहीं है तो कोई बात नहीं। जहां-जहां सरकार स्कूल बंद करेगी, वहां पीडीए कार्यकर्ता पाठशालाएं खोलेंगे। अब देखना है कि क्या इन पर भी सरकार बुलडोजर चलाएगी या शिक्षकों पर एफआईआर करवाएगी?”
सरकार का पक्ष: संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल
प्रदेश सरकार का तर्क है कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम है, उन्हें पास के बड़े स्कूलों में मिलाने से न केवल संसाधनों का समुचित उपयोग हो सकेगा बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता भी बेहतर होगी। इस योजना के तहत राज्यभर में लगभग 27,000 स्कूलों की पहचान की गई है।
विपक्ष की आशंका: बच्चों पर बढ़ेगा बोझ
विपक्षी दलों का कहना है कि इस कदम से छात्रों को दूरदराज के स्कूलों में जाना पड़ेगा, जिससे उनकी शिक्षा पर असर पड़ेगा। खासतौर पर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में यह निर्णय बच्चों के लिए असुविधा और असुरक्षा का कारण बन सकता है।