ट्रिब्यूनल नियुक्ति मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र को दी 2 हफ्ते की मोहलत

देश में ट्रिब्यूनल के पदों पर नियुक्तियों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने सरकार से दो हफ्तों में सभी नियुक्तियों से जुड़ी जानकारी मांगी है, साथ ही सरकार के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलाने की चेतावनी भी दी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि जब कमेटी द्वारा कैंडिडेट के नामों को सुझाया गया है, तब अबतक इन पदों पर नियुक्ति क्यों नहीं हो पाई है. चीफ जस्टिस एनवी. रमना ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार द्वारा चेरी पिक की नीति से नियुक्ति की गई है. अगर पहले ही चिन्हित लोगों की लिस्ट तैयार की गई है, तब वेट लिस्ट से क्यों चुना गया है. 

सरकार की ओर से जवाब दिया कि केंद्र सरकार को अपने अनुसार नियुक्ति करने का अधिकार है. हालांकि, चीफ जस्टिस (CJI) ने साफ किया कि कमेटी द्वारा 41 लोगों का नाम सुझाया गया लेकिन 18 की ही नियुक्ति हुई है. हमें ये भी नहीं पता कि किस आधार पर लोगों को चुना गया है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपत्तियों पर AG ने कहा कि सरकार के पास अधिकार है कि वह सभी सुझावों को ना माने. 

चीफ जस्टिस ने इस दौरान कहा कि हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, जो संविधान के मुताबिक चलता है. ऐसे में आप इस तरह का जवाब नहीं दे सकते हैं. सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि हमने सभी सुझावों पर नज़र डाली है, कुल 6 ट्रिब्यूनल में कोई जगह नहीं है. बल्कि बाकी 9 ट्रिब्यूनल को लेकर किसी तरह का सुझाव नहीं दिया गया था. 

‘सिलेक्शन कमेटी की जरूरत क्या?’

सरकार द्वारा चुने गए नामों पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार को अपने हिसाब से लोगों को चुनना है, तो फिर सिलेक्शन कमेटी की ज़रूरत क्या है. चीफ जस्टिस ने आपत्ति जताते हुए कहा कि जिस तरह से लोगों का चयन हुआ है, हम इससे बेहद नाखुश हैं. हमने 500 लोगों का इंटरव्यू किया, जिसमें से 11 को शॉर्टलिस्ट किया लेकिन उनमें से सिर्फ 4 का सिलेक्शन हुआ और सरकार ने बाकी वेटिंग लिस्ट से चुन लिए.

सुप्रीम कोर्ट ने अब ट्रिब्यूनल एक्ट को लेकर दायर याचिका पर जवाब देने और बाकी मुद्दों को लेकर सरकार को दो हफ्ते का वक्त दिया है. देश की अलग-अलग ट्रिब्यूनल में लोगों की कमी और एक जगह से दूसरे जगह लोगों को भेजे जाने के मसला जब अदालत में उठा, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की.

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हैदराबाद में कोई व्यक्ति नहीं है, वहां के लोगों को कोलकाता जाना पड़ता है. कोलकाता के लोगों को लखनऊ जाना पड़ता है. सिस्टम पूरी तरह से खराब हो चुका है. किसी भी तरह की दिक्कत को अब सिर्फ लोगों की नियुक्ति कर दूर किया जा सकता है. 

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