28 नवंबर की सबसे बड़ी, सबसे अधिक उत्साहवर्द्धक और तन-मन को पुलकित करने वाली खबर समग्र देशवासियों और पूरे विश्व को मिल चुकी है। सिलक्यारा (उत्तरकाशी) की सुरंग में 17 दिनों तक मौत के साये में 400 घंटे गुज़ारने वाले 41 श्रमवीरों की मनोदशा, उनको सुरक्षित बाहर लाने में जुटे सेना के जवानों, अधिकारियों, डॉक्टर्स, इंजीनियरों, प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों, मुख्यमंत्री व केन्द्रीय मंत्री और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिजीविषा, दृढ़ संकल्प, पौरुष व कार्यनिष्ठा को तमाम दुनिया ने देखा। संसार ने देखा कि समूचा भारत जीवन-मृत्यु के झंझावात में फंसे अपने भाइयों की सलामती के लिए परमपिता परमेश्वर, अल्लाहताला, वाहे गुरु, यीशु से प्रार्थना, दुआ, अरदास करने में जुटा है। यहां सिलक्यारा आपदा और बचाव अभियान के घटनाचक्र का वर्णन करने की जरूरत नहीं।
सिर्फ यह कहना है कि दुनिया ने भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति, साहस व ईश्वर में अटूट आस्था को देखा है। जहां बड़ी से बड़ी मशीनें नाकाम हो जाती हैं, वहां इन्सान के हाथ, कुदाल और कुशलता काम आई। ‘देहात’ बचाव अभियान में संलिप्त व्यक्तियों एवं जीवन बचाने वाले सभी महानुभावों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता है। सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति के समक्ष नतमस्तक होने के अलावा संकट की घड़ी में पुरुषार्थ के साथ-साथ अरदास ही कर सकता है। यही ध्रुव सत्य है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’