नक्सलियों को श्रद्धासुमन अर्पित करते ये कांग्रेसी


छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला के छोटे बैठिया क्षेत्र के बिनागुण्डा व कोरोनार तथा मध्य हापाटोला के जंगलों में खूंखार माओवादियों के होने की सूचना मिलने पर 16 अप्रैल, 2024 को डीआरजी एवं बीएसएफ की संयुक्त टीम उन्हें खोजने निकली। आमने-सामने की मुठभेड़ में 29 नक्सली ढेर हो गए। मृतकों में 25 लाख रुपये का इनामी नक्सली भी था जो दर्जनों हत्याओं तथा वाहनों की तोड़‌फोड़-बारूदी सुरंगों में विस्फोट की घटनाओं में वांछित था।

ये माओवादी वे हैं जो चीन की खूनी क्रान्ति के मुखिया माओत्सेतुंग के अनुयायी हैं, जिसका कहना था कि सत्ता बुलेट से निकलती है, बैलेट (वोट) से नहीं।

हमें याद आ रहा है कि कुछ वर्षों पूर्व मुज़फ्फरनगर की अग्रणी शिक्षण संस्था- श्रीराम कालेजेस के प्रमुख डॉ सुभाषचन्द्र कुलश्रेष्ठ ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी श्री प्रकाश सिंह को अपने विद्यालय की गोष्ठी में आमंत्रित किया था। वे उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके थे और बीएसएफ के प्रमुख नियुक्त हुए थे। उनकी गणना देश के सक्षम तथा प्रभावी कार्यवाही करने वाले आईपीएस अधिकारियों में होती थी। मुजफ्फरनगर की गोष्ठी में श्री सिंह ने नक्सली आन्दोलन के विषय में विस्तार से उसकी पृष्टभूमि की तत्कालीन परिस्थीतियों का बेबाकी के साथ चित्रण किया। आपने बताया कि पश्चिमी बंगाल की छोटी सी जगह नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ एक छोटा मामूली आंदोलन कैसे राजनीतिक इच्छाशक्ति तथा नेतृत्व की कमजोरी के कारण दक्षिणी राज्यों तक फैल गया और देश के 100 से अधिक जिलों में पैर पसार लिए। प्रकाश सिंह ने किसी दल का नाम तो नहीं लिया किन्तु साफ़-साफ़ कहा कि यदि सरकार चलाने वालों का रुख नक्सलियों के प्रति दृढ़ होता तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बने नक्सलियों का उन्मूलन हो सकता है।

माओवादियों, आतंकियों, अराजकतत्वों, माफियाओं के प्रति कांग्रेस का रुख पहले से न्रम रहा है। कश्मीर के अलगाववादियों को कैसे विमानों में बैठा कर लाया जाता था, मेहमाननवाजी की जाती थी, कांग्रेस के नेताओं के साथ अलगावादियों आतंकियों के फोटो सारी कहानी कहने को पर्याप्त हैं।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने नक्सलियों के उन्मूलन का बीड़ा उठाया हुआ है किन्तु कांग्रेस का नेतृत्व व उनके अनु‌यायी अब भी तुष्टीकरण की नीति पर कायम हैं। कांकेर मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की निन्दा की है तो दूसरी ओर काँग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने मारे गए नक्सलियों को शहीद बताते हुए उन्हें श्रदांजलि अर्पित की। कांग्रेसी नेताओं के ये उद्‌गार वीडियो में उपलब्ध हैं।

नक्सलियों को शहीद बताने वाली सुप्रिया श्रीनेत को हम 25 मई, 2013 की नक्सलियों की कारगुजारी का ध्यान दिलाना चाहते हैं। इंदिरा गांधी के अति विश्वसनीय और पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल परिवर्तन यात्रा की बस से पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नन्द‌कुमार पटेल, विधायक कवासीलकपा, पूर्व विधायक महेन्द्र शर्मा, उद‌य मुद‌लियार और तमाम वरिष्ठ कांग्रेसजनों के साथ सुकमा (जिला बस्तर) से लौट रहे थे अचानक नक्सलवादियों ने कांग्रेसजनों की बस को चारों ओर से घेरकर ताबड़‌तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस नक्सली हमले में 30 कांग्रेसजन शहीद हो गए।

विद्याचरण शुक्ल को उनके अंगरक्षक ने बचाने के उद्देश्य से बस के नीचे छुपाने की कोशिश की तो वह नक्सलियों की गोलियों से बुरी तरह छलनी हो गया। अंतिम सांस लेने से पहले उसने विद्याचरण शुक्ल से कहा- अपसोस मैं आपको नक्सलियों की गोलियों से नहीं बचापाया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। शुक्ला जी को विमान के जरिये गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल लाया गया। 17 दिनों बाद 11 जून, 2013 को नक्सली हमले के कारण भी निधन हो गया।

भूपेश बघेल और सुप्रिया श्रीनेत को नक्सलियों की काली करतूतें और विद्याचरण शुक्ल जैसे कद्दावर कांग्रेस नेता की शहादत तो याद नहीं रहीं। हजारों बेगुनाहों के खून से हाथ रंगने वाले माओवादियों को वे शहीद बता रहे हैं। समझ नहीं आता कि क्या वास्तव में इनकी मति मारी गई है या ये अपने आका के इशारे पर अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं?

गोविन्द वर्मा

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