यह लोकतंत्र का पर्व !

निर्वाचन आयोग ने मार्च, 2024 से लेकर 13 अप्रैल तक कुल 4,650 करोड़ रुपये की नकदी, शराब, ड्रग्स व वोटरों को उपहार में भेंट करने वाली वस्तुओं की जब्ती की है। इसमें 395.39 करोड़ रुपये नकद, 489 करोड़ रुपये की शराब, 2068 करोड़ रुपये की ड्रग्स, 56 करोड़ रुपये की वे कीमती वस्तुएं जो मतदाताओं और वोटों के ठेकेदारों को बाटी जानी थीं, शामिल हैं।

लोकतंत्र के पर्व पर राजनीतिक दल और उम्मीद‌वार उसी तरह रुपये, पैसे तथा वस्तुओं की खैरात बांटते हैं जैसे अर्धकुंभ और महाकुंभ पर गंगा में गोता मारने वाले दान-पुण्य करते हैं। चुनाव पर्व पर दान में देनी वाली वस्तुओं की शक्ल बदल जाती है जैसे गऊदान के बजाय कार-दान या बाइक-दान, अब मोबाइल फोन का युग है तो 3 कैमरों वाले स्मार्ट फोन का दान। जब सोना 100 रुपये तोला होता था तब वोटरों के दलाल 100 रुपये में बिरादरी के वोटों का ठेका ले लेते थे, आज सोना 70 हजार के पार है तो 5-10 लाख से कम पर रजामन्दी नहीं होती।

कुम्भ में धर्म के ठेकेदारों को हलवा-पूरी खिलाई जाती है, लोकतंत्र के कुंभ पर राजनीतिक पुरोहित दारु-मुर्गा का भक्षण तो करेंगे ही। इस सब के लिए पैसा तो चाहिए, वह भी ब्लैक मनी। चुनाव बॉन्ड खरीदेंगे तो हिसाब देना ही पड़ेगा, इसीलिए चिल्ल पुकार मची है।

लोग कहते हैं कि महंगाई बढ़ी है तो चुनाव खर्च भी तो बढ़ेगा। पहले जितना खर्च एमएलए के चुनाव में होता था, उससे ज्यादा तो प्रधानी के चुनाव में होने लगा है। सब कालेधन की महिमा है। नोटबंदी को कोसने वाले वोटबंदी में जुटे हैं। वाह! क्या लोकतंत्र है। वोटर भी जानता है कि 5 साल में गोता लगाने का मौका मिलता है। लोकतंत्र के रखवालों से यह सवाल तो किया ही जाना चाहिए कि चुनाव में जो पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, उसकी वसूलयाबी वे कैसे करेंगे?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here