वे, जिन्हें भगवान का प्रतिरूप मानते हैं


राजधानी दिल्ली से आई खबर के अनुसार भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने देश के 13 बड़े अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों में नियुक्त चिकित्सकों द्वारा मरीजों को दिये जाने वाले पर्चे (डिस्क्रिप्शन) आधे- अधूरे लिख दिए गए थे। पहले जान लेते हैं कि ऐसा किन अस्पतालों में हुआ, ये हैं- दिल्ली एम्स, सफदरजंग अस्पताल, भोपाल एम्स, बड़ौदा मेडिकल कॉलेज, मुम्बई जीएसएमसी, ग्रेटर नोएडा राजकीय अस्पताल, सीएमसी वेल्लौर, पी. जी. आई.चंडीगढ़, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज पटना आदि। यह भी गौरतलब है कि जिन डाक्टरों ने अधूरे पर्चे लिखे वे पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उन्हें। 18-20 वर्षों का अनुभव है। इन हाक्टरों द्वारा लिखे गए 7,800 पर्चों में से 4,838 पर्चों में खामियां पाई गईं। 473 पर्चे तो पूरी तरह गलत मिले।

यह तो लापरवाही का मात्र एक उदाहरण है। सरकारी तथा निजी अस्पतालों के चिकित्सकों पर लापर‌वाही के आरोप लगना या मरीज के इलाज के प्रति संवेदनहीनता बरतने के आरोप प्राय: लगते रहते हैं। आये दिनों चिकित्सकों या अस्पतालों के विरुद्ध हंगामे व प्रदर्शन होना चिन्ताजनक है और दिखाता है कि मरीज व तीमारदार जिस डाक्टर को ईश्वर मानकर मर्ज के इलाज व प्राणरक्षा की कामना करता है, वह संवेदनहीन होता जा रहा है।

अभी उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने आरोप लगाया है कि लखनऊ स्थित मेदान्ता अस्पताल में भर्ती उनकी 78 वर्षीया माता के इलाज के लिए चार दिनों में अस्पताल ने चार लाख रुपये ले लिए और उनकी माता की बेहोशी की हालत में मृत्यु हो गई। अस्पताल ने स्पष्टीकरण देकर पल्ला झाड़ लिया।

केवल चिकित्स‌कों की निन्दा करने या अस्पताल संचालकों को कोसने से तो स्थिति सुधरने वाली नहीं है। डाक्टरों को जिम्मेदार व संवेदनशील बनना ही पड़े‌गा और उस दौर में लौटना पड़ेगा जब लोग डाक्टरों को ईश्वर के रूप में देखते थे।

गोविन्द वर्मा

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