स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को विनम्र श्रद्धांजलि !

सत्य सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के महान ध्वज वाहक शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती 11 सितम्बर को मध्य प्रदेश के अपने नरसिंह पुर आश्रम से स्वर्गारोहण को निकल गए। उनका शरीरांत भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म की बड़ी क्षति है।

वे मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में धर्म पथ की यात्रा पर निकल पड़े थे। 1942 के आंदोलन के बाद में भी स्वाधीनता संग्राम आंदोलन में जेल काटी। करपात्री जी महाराज की प्रेरणा से काशी में वेद, वेदांग, शास्त्रों का अध्ययन किया। ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से 1950 में दंड सन्यासी की दीक्षा ली। 1973 में शंकराचार्य की उपाधि मिली और आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदा तथा ज्योतिष पीठ के पीठधीश्वर बने।

आप स्पष्टवादी विचारों के सन्यासी थे इसलिए कभी- कभी उनकी सच्ची बातें कुछ लोगों को कड़वी लगती थीं। वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक द्वारा राजनीतिक दखल अंदाजी को ठीक नहीं मानते थे और साफ-साफ कहते थे कि उसे सिर्फ हिन्दू हितों का ध्यान रखना चाहिए। अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि आंदोलन पर भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार आधिपत्य किया, उसका भी महाराज श्री ने विरोध किया। कहा कि भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठाएगी।

स्वामी जी ने देश में सम्मान नागरिक संहिता लागू करने, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और सम्पूर्ण भारत में पूर्ण गोवध नियंत्रण कानून लागू करने की मांग की थी। जब टिहरी बांध बनाने की योजना बनी तो आपने यह कह कर विरोध किया कि इसमें गंगा की अविरल धारा प्रभावित होगी। हिन्दुओं के एक वर्ग द्वारा शिरडी साईं को ईश्वर के रूप में पूजने और साई मंदिर बनाने की आपने खुल कर निंदा की।

मैं स्वयं को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे स्वामी जी महाराज के सानिध्य में लगभग दो घंटे रहने और उनका साक्षात्कार लेने का सुअवसर मिला। पत्रकार ओमप्रकाश पाल तब दैनिक जागरण में कार्यरत थे। उनके पास मेरठ से सन्देश आया कि शुक्रताल में चतुर्मास कर रहे स्वामी स्वरूपानन्द जी का इंटरव्यू ले कर भेंजे। पाल साहब ने मुझसे आग्रह किया कि उनके साथ शुक्रताल चलूं और इंटरव्यू लूँ। महाराज श्री से मिल असीम आनंद मिला। मैंने कहा- आप धर्म व देश की स्थिति पर अपने विचार दीजिये। मुज़फ्फरनगर आ कर मैंने ही इस साक्षात्कार को लिपिबद्ध किया जो पाल साहब के नाम से प्रकशित हुआ। एक प्रश्न में मैंने पूछा था- आप बद्रीनाथ को छोड़ यहां चतुर्मास क्यों कर रहे हैं। उनका उत्तर मुझे अब तक याद है। आपने जवाब दिया था- ‘यहां अपूर्व शांति है और शुकदेव महाराज आठों पहर यहां विराज मान रहते हैं।’

महाराज श्री के ब्रह्मलोक गमन पर हमारा कोटि-कोटि नमन!

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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