अभी तीन दिन पहले एक टेलीविजन चैनल को दिये गए इंटरव्यू में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हम देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने को प्रतिबद्ध हैं।
श्रीशाह ने कहा कि न केवल जनसंघ ने बरन संविधान सभा ने भी उचित समय पर यूसीसी लाने की सलाह दी थी। गृहमंत्री ने कहा कि एक धर्म निरपेक्ष व लोकतांत्रिक राज्य में धर्म के आधार पर नागरिक कानून नहीं होने चाहियें।
देश में समान नागरिक संहिता लाने की सुगबुगाहट से तुष्टीकरण, साम्प्रदायिक, जातिवादी-परिवारवादी राजनीति करने वाले नेता एवं मज़हबी संगठनों के मठाधीश बौखलाये हुए हैं। असदुद्दीन ओवेसी और देवबन्दी, बरेलवी मौलाना तो समान नागरिक संहिता को मुसलमानों के हितों पर कुठाराघात व भगवाकरण स्थापित करने की साजिश बता रहे हैं।
हैरत इस बात की है कि समानता और धर्म निरपेक्षता के नारे लगाने वाले कुछ तथाकथित प्रबुद्धजन भी इस प्रगतिशील सम्भावित कानून की अभी से आलोचना करने में जुट गए हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के न्यायधीशों के भी यूसीसी पर विपरीत विचार सामने आये है।
संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर गोष्ठी में जस्टिस ए.आर. मसूदी ने कहा कि कानून किसी व्यवस्था पर दबाव डालने से नहीं बनते। आपसी मेलजोल की भावना से समान नागरिक संहिता खुदबखुद लागू हो जाएगी यानि इसके लिए कानून बनाने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी ओर जस्टिस सौरभ लवानिया ने कहा कि यूसीसी पर कानून बनने से सबसे अधिक लाभ महिलाओं और बच्चों को पहुंचेगा। हम देख रहे हैं कि दकियानूसी सोच के लोग अभी से समान नागरिक संहिता के विरोध में गोलबंद हो रहे हैं।
गोविन्द वर्मा