इन बदमाशों की मौत पर क्यों रोते हैं लोग ?

पूर्वांचल का दुर्दांत माफिया, हत्यारा, अपहरणकर्ता, रंगदारी वसूलने वाला गैंगस्टर तथा जेल में बंद होने के बावजूद सलाखों के पीछे से हुकूमत चलाने वाला बदमाश 28 मार्च की रात्रि को हृदय आघात से मर गया। मुख्तार पर 65 एफआईआर दर्ज थीं। 8 मुकदमे तो हत्याओं के ही थे जिनमें एक चर्चित मुकदमा भाजपा के वरिष्ठ नेता विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से संबंधित भी है। माफिया बृजेश सिंह के गुर्गों व पुलिसजनों, मुकदमों के गवाहों के खून से मुख्तार के हाथ सने हैं।

अपने भाई अ‌फजाल अंसारी के विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद 2005 में मुख्तार ने मऊ में साम्प्रदायिक दंगा कराया। खुली जीप में चढ़ कर हाथों में राइफल और पैट्रोल की कनस्तरी लिए हुए मुख्तार अंसारी के वीडियो अब भी मौजूद हैं। दबंगई और ‌गुण्डागर्दी के इन मुंह बोलते साक्ष्यों को कोई झुटला नहीं सकता। फिर भी कम्युनिस्ट पार्टी सपा, बसपा और कांग्रेस का डॉन के सर पर सरपरस्ती का हाथ उठा रहा। परिणाम स्वरूप इन नेताओं के सहारे वह डॉन से ‘माननीय’ बन गया। जितनी हत्याएं की, रंगदारी वसूली, पैसा कमाया उतना ही रुतबा बढ़ता चला गया और पार्टियों के छत्रप उसके सामने नतमस्तक होते चले गए।

इस सब के बावजूद एम.वाई. की राजनीति चलाने वाले उत्तर प्रदेश व बिहार के यादव नेताओं की हमदर्दी मुख्तार अंसारी के प्रति फूट पड़ी है। समाजवादी पार्टी ने मुख्तार को श्रद्धांजलि देते हुए उसकी हत्या का आरोप लगाया है। बिहार के याद‌वी नेता तेजस्वी व तेजप्रताप कह रहे हैं कि मुख्तार को धीमा ज‌हर देकर मारा गया है जिसकी जाँच सुप्रीम कोर्ट के जज से कराई जाए। बिहार के चर्चित माफिया पप्पू यादव जिस पर अपहरण, हत्या, फिरौती जैसे संगीन एफआईआर दर्ज हुई, वे भी मुख्तार की मौत को हत्या बता कर जांच की मांग कर रहे हैं। जिस मायावती ने मुख्तार को गुंडा बता कर पार्टी से निष्कासित किया। वह अब मौत पर स्यापा कर रही है।

बदायूं में दो मासूम बच्चों की क्रूर हत्या पर जिस हैद‌राबादी नेता के मुँह से दो शब्द नहीं निकले थे, वह बेशर्मी से कह रहा है कि गाजीपुर ने अपना बेटा व भाई खो दिया है। जिस मुनव्वर राणा ने कहा था कि योगी जीता तो यूपी छोड़ दूंगा, आज उसकी बेटी टसुवे बहा रही है।

आज यह प्रश्न उठता है कि एक समाज गुण्डों, बदमाशों, हत्यारों, लुटेरों, आतंकियों के प्रति इतनी सहानुभूति क्यों रखता है? बदायूं में बच्चों के हत्यारे के जनाजे में भीड़ का सैलाब तो अभी-अभी उमड़ा था। इस मातमी भीड़ में कौन थे? उन्होंने क्या यह नहीं सोचा कि जिन वालदेन के दुधमुहे बच्चों को क़त्ल कर दिया गया, उनके दिलों पर क्या बीत रही होगी?

राजू पाल और उन जैसे दर्जनों निर्दोष लोगों का हत्यारा तथा आतंक और दबंगई का माहौल कायम कर खरबपति बना तांगा चालक अतीक जब अपने किए की सज़ा भुगत कब्रिस्तान पहुंचा तो भीड़ को नियंत्रित करने को पीएसी लगानी पड़ी।

भारत के लोग भूल नहीं सकते कि अशरफ वानी जैसे खूंखार आतंकी के जनाजे में कैसी भीड़ उमड़ी थी। ये वे ही लोग थे जो हमारे सुरक्षाबलों पर पत्थर बरसाते थे।

देश में एक ऐसी लॉबी दिनोंदिन मजबूत होती जा रही है जो कानून, संविधान, मानव अधिकारों की आड़ में गुण्डा-बद‌माश तत्वों, माफियाओं, अराजकतावादियों, देशद्रोहियों, आतंकियों की बड़ी निर्लज्जता के साथ पैरोकारी करते हैं। ये वे ही लोग हैं जो आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े खुलवाते हैं और अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा है जैसे नारे लगवाने में जुटे हैं। गुंडों को वे हरदिलअजीज और रॉबिन हुड बता कर उनका महिमा मंडन करके सत्ता कब्जाना चाहते हैं। यह अच्छा है कि इन भेड़ियों के मुंह से अब नक़ाब उठता जा रहा है। एजेंडावादी मीडिया जब मुख्तार अंसारी के परिवार का गुणगान करता हैं तो उससे 2005 के दंगे के दौरान मऊ में तैनात डीएसपी शैलेन्द्र सिंह की स्थिति का भी बयान करना चाहिए कि मुलायम सिंह के दबाव के कारण उन्हें पुलिस की नौकरी से क्यों इस्तीफा देना पड़ा था।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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