पश्चिमी बंगाल को क्रांतिधरा के साथ ही कला, साहित्य, संस्कार-संस्कृति के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन प्रफुल्ल चंद्र सेन, प्रफुल्ल चंद्र घोष, बिधानचन्द्र राय, सिद्धार्थ शंकर राय जैसे मुख्यमंत्रियों के बाद आई सरकारों ने बंगाल की श्रेष्ठ पहचान को बट्टा लगा दिया है। मार्क्सवादी शासन के रक्तिम इतिहास के बाद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के उभरने के पश्चात भी वहां मार-काट, हिंसा, बमबाजी का दौर-दौरा है। भ्रष्टाचार और सत्ता के दलालों की लूट-खसोट में ममता सरकार रिकार्ड तोड़ रही है। बांग्लादेशी व रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ, गौवंश तस्करी, सरकारी नौकरियों की नीलामी आदि की मिसालों ने बंगाल के नाम को कलंकित किया है।
गत 23 जुलाई, 2022 को ममता सरकार के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के कब्जे से 365 करोड़ रुपये की नकदी बरामद होने से पूरा देश हतप्रभ हो गया था। अभी 22 अप्रैल, 2024 को कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस देबांगसु बसाक तथा जस्टिस मोहम्मद शब्बर रशीदी की पीठ ने सन् 2016 में पश्चिमी बंगाल स्कूल कमीशन द्वारा नौकरी के लिए चुने गए 24 हजार से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा- भ्रष्टाचारियों और सरकार के बीच सांठगांठ थी। कोर्ट ने टिप्पणी की है कि ममता मंत्रिमंडल की बैठक में नियुक्ति का समर्थन का प्रस्ताव पास करना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का प्रयास है। कोर्ट ने शिक्षक भर्ती घोटाले की जाँच सीबीआई से कराने का आदेश दिया और ममता सरकार से कहा कि वह लोकसभा चुनाव के 15 दिनों के बाद नियुक्ति की प्रक्रिया पुनः आरंभ करे।
हाईकोर्ट के इस फैसले पर मुख्यमंत्री ममता बुरी तरह बौखला गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट के जजों ने भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में बैठ कर यह फैसला लिखा है। ममता ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। ममता पहले सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय व अर्द्धसैनिक बलों जैसे विभागों को खत्म करने की मांग कर चुकी है। ममता का भ्रष्टतंत्र लोकतंत्र के पवित्र सिद्धान्तों को पैरो तले रौंद रहा है। यह दुष्टता कब तक चलेगी, कोई नहीं जानता।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’