कश्मीर में फिर से 1990: तू इधर-उधर की बात न कर

कल ही हमने कश्मीर घाटी में जिहादी इस्लामिक आतंकियों द्वारा हिन्दुओं की लक्षित हत्याओं के कारण उत्पन्न भयावह स्थिति का जिक्र किया था कि कश्मीर को प्योर इस्लामिक स्टेट में बदलने की कोशिश में लगे कट्टरपंथी कैसे हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं। खेद हैं की बुधवार को कुलगाम के सोहनपारा में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले बैंक मैनेजर विजय कुमार की हत्या कर दी गई। कश्मीर फ्रीडम फाइटर नामक आतंकी संगठन के प्रवक्ता वसीम मीर ने कहा है कि कश्मीर घाटी में गैर मुस्लिमों को ऐसे ही मारा जायेगा। सुबह की इस टारगेट किलिंग के बाद बड़गाम के खांडा माजापोरा में हिन्दू भट्टा मजदूरों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिसमें बिहार का श्रमिक दिलखुश मारा गया और पंजाब के गुरदासपुर का गोरिया गंभीर रूप से घायल हो गया। कश्मीर को इस्लामिक स्टेट बनाने वाले कट्टरपंथी मुसलमान एक और हिन्दुओं की हत्या कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्होंने सुरक्षा बलों पर भी हमले तेज कर दिए हैं। बुधवार को ही शोपियां के रोजान में आतंकियों ने सुरक्षाकर्मी प्रवीण कुमार की हत्या कर दी।

कश्मीर घाटी में शांति बहाली को धता बताते हुए इस्लामी राज्य की स्थापना का अहद उठाने वालों ने चारों तरफ से हमला बोला हुआ है। इसमें सब से ज्यादा खतरनाक भूमिका उन लोगों की है जो खुद को डेमोक्रेटिक और सेक्युलर कहते हैं और कश्मीरियत का नारा बुलंद कर आतंकी घटनाओं तथा अलगाववाद को हवा देने में जी-जान से जुटे हैं। हिन्दू शिक्षिका रजनीबाला और राहुल भट्ट की हत्या की और ध्यान दिलाने पर फारूक अब्दुल्ला ने कहा था -‘सब मरेंगे’। उन्होंने फिर कहा है कि सरकार अमरनाथ यात्रा सकुशल संपन्न करके दिखाये। महबूबा मुफ़्ती लगातार कश्मीरी मुस्लिम युवकों को भड़का रही हैं। सीमा पार से साजिशें जारी हैं। सरकार कह रही है कि घाटी में शांति बहाली से पकिस्तान चिढ़ गया है।

इस खामख्याली और रस्मी बयानबाजी से कश्मीरी हिन्दुओं को राहत, चैन, सुरक्षा मिलने वाली नहीं। आप सीमा पार की साजिशों को रोकने में नाकाम हैं। कम से कम उनके गुर्गों की गर्दन तो मरोड़ सकते हैं जो पाकिस्तान के मंसूबो को हवा दे रहे हैं। कश्मीर में बिना किसी हीलाहवाली के कठोर निर्णय लेने की जरूरत है। यह कश्मीर का नहीं पूरे भारत का सवाल है। कश्मीर के संगीन हालात प्रधान सेवक से कहने को मजबूर हैं:

तू इधर उधर की न बात कर
ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा।
मुझे रहज़नों से गिला नहीं,
तिरी रहबरी का सवाल है।।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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