भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित बाबा चमलियाल का मेला आयोजन

जम्मू संभाग के जिला सांबा के रामगढ़ सेक्टर में दग गांव में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित बाबा चमलियाल का मेला आज आयोजित हुआ। मेले में प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों से सैकड़ों लोग पहुंचे और उन्होंने बाबा की दरगाह पर शीश नवाया। गुरुवार सुबह बीएसएफ के अधिकारियों ने बाबा चमलियाल की दरगाह पर चादर चढ़ाई।

कोरोना वायरस की महामारी के चलते दो साल तक मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। ऐसे में इस बार लोगों में भारी उत्साह देखा गया। बीएसएफ के डीआईजी सुरजीत सिंह, सांब डीसी अनुराधा गुप्ता, डीडीसी अध्यक्ष केशव दत्त, पूर्व मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा ने बाबा चमलियाल के दरबार में माथा टेका।

वहीं, इस बार पाकिस्तान की तरफ से चादर नहीं पहुंची और न ही भारत की तरफ से पाकिस्तान को शरबत और शक्कर भेजी गई। मेले में आए लोग पाकिस्तान की तरफ से आने वाली चादर का इंतजार करते दिखे, लेकिन उन्हें निराशा मिली।बता दें कि 2018 में पाकिस्तानी गोलाबारी में बीएसएफ के जवान शहीद हो गए थे। इसके चलते गांव और बीएसएफ के अधिकारियों ने मेला रद्द कर दिया था। ऐसे में न पाकिस्तान को शकर और शरबत भेजी गई थी और न ही पाक रेंजर्स से चादर ली गई थी। इसके बाद कोरोना महामारी के चलते मेले का आयोजन नहीं हो पाया था।

क्या है मेले का इतिहास

जानकारों के मुताबिक की दो सौ वर्ष पूर्व दग गांव में बाबा दलीप सिंह मन्हास रहा करते थे। वह चंबल रोग का उपचार करते थे। कहा जाता है कि उनकी मौत के बाद जब लोग चंबल रोग का शिकार होने लगे तो एक दिन बाबा ने अपने शिष्य को सपने में बताया कि उनके स्थान से मिट्टी और कुएं के पानी के लेप करने से चंबल का रोग ठीक हो जाएगा।

यह विधि अपनाते ही उक्त चर्म रोग से पीड़ित लोगों को लाभ मिलने लगा। यह भी कहा जाता है कि भारत-पाक के बंटवारे से पहले से वहां के श्रद्धालु बाबा की मजार पर चादर चढ़ाने आया करते थे। और शक्कर-शरबत ले जाते थे। बाद में हालात बिगड़ने पर पाक के श्रद्धालु केवल चादर ही भेजते हैं, जिसे भारतीय सुरक्षा बल के अधिकारी बाबा की मजार पर चढ़ाते हैं।
 पहले मेले का आयोजन बीएसएफ की ओर से किया जाता था, लेकिन कुछ वर्षों से जिला प्रशासन की ओर से मेले का आयोजन किया जा रहा है। जीरो लाइन पर एक कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है, जहां दोनों देशों के अधिकारी एवं आम नागरिक एक-दूसरे को उपहार देते हैं और दोनों देशाों में अमन की दुआ करते हैं। लेकिन इस साल पाकिस्तान की तरफ से न तो चादर आई और न ही उपहार का आदान-प्रदान हुआ।

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