बाबू जगजीवन राम, जिन्हें प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनना था !

राजनीति को निष्ठुर और निर्मम ठीक ही बताया गया है। यह कितनी दुःखद स्थिति है कि जिस महान नेता ने 50 वर्षों तक पूर्ण निष्ठा के साथ देश और समाज सेवा की, उसे चुनाव के कोलाहल में भुला दिया गया। हमारा आशय भारत के उप-प्रधानमंत्री और दिग्गज नेता बाबू जगजीवन राम से है। 5 अप्रैल को उनका 122 वां जन्मदिन था लेकिन न तो भाजपा के लोगों ने न ही कांग्रेस ने उन्हें याद किया।

बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को ग्राम चंदवा जिला भोजपुर बिहार में एक दलित परिवार में हुआ। कुशाग्रबुद्धि जगजीवन राम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय तथा कलकत्ता विद्यापीठ से उच्च शिक्षा प्राप्त की। मात्र 28 वर्ष की आयु में बिहार विधान परिषद् के सदस्य बने। 1937 में बिहार असेम्ब्ली के सदस्य बने और कांग्रेस की अंतरिम सरकार में शिक्षा मंत्री नियुक्त हुए। तत्पश्यात गाँधी जी तथा कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों व कार्यक्रमों में सक्रिय रहे। संविधान सभा के भी सदस्य रहे।

दलितों की बदहाली को देखकर अखिल भारतीय स्तर पर रविदास महासभा का गठन किया और दलित समाज की हैसियत को राजनीति में आगे बढ़ाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जवाहर लाल नेहरु व इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल में रेलवे, कृषि एवं सिंचाई, संचार, परिवहन, रक्षा जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली आपातकाल लगाने के विरोध में हेमवती नंदन बहुगुणा के साथ सीएफडी बनाई। मोरारजी देसाई सरकार में उप प्रधानमंत्री बने।

जगजीवन राम जिस मंत्रालय में भी रहे वहां उनकी कार्यशैली और योग्यता की छाप रही। कृषि मंत्री रहते हुए उनके कार्यकाल में ही हरित क्रांति आरंभ हुई और 1971 में जब वे रक्षा मंत्री थे भारत ने पकिस्तान को पराजित किया, उसके 90 हजार सैनिकों को बंदी बनाया गया तथा पूर्वी पाकिस्तान के खात्मे के साथ बांग्लादेश का उदय हुआ।

बाबू जी की योग्यता, अनुभव व निष्ठा और सेवाओं को देखते हुए उन्हें प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित होना चाहिए था किन्तु राजनीति प्रपंचों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। यदि ऐसा हो गया होता तो आज भारतवर्ष संसार का श्रेष्ठ और मजबूत राष्ट्र बन गया होता। यह देश का दुर्भाग्य ही रहा। ऐसी महान शख्सियत को सम्मान देना वर्तमान पीढ़ी का कर्तव्य है। खेद है कि हम इस कर्त्तव्य में पिछड़ गए।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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