पुरातन सनातन संस्कृति में आस्था रखने वाले प्रत्येक स्त्री-पुरुष की जुबान पर यह बीजमंत्र आठों पहर रहता है। शिव यानी परंब्रह्म अर्थात महादेव, नीलकंठ, महाकाल, शंकर, महेश्वर, पशुपतिनाथ, नटराज, भोलेनाथ, वैद्यनाथ, रुद्र! शिव सहस्त्रनाम में इनके 1000 नामों के जप की अनुपम महत्ता का बखान है। देवों में महादेव इस लिये माने गये हैं कि ये शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, प्रलय, वैराग्य, सृष्टि के पालनकर्ता हैं।
मनुष्य के लौकिक व पारलौकिक उत्थान का सूत्र शुल्क यजुर्वेद में दिया गया है। शिवसंकल्पोपनिषद्। इसके 6 सूक्त हैं। येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु। अर्थात, हे प्रभु! (शिव) जागृत और सुप्तावस्था में जो मन दूर-दूर तक चला जाता है ऐसा मेरा मन शुभ एवं कल्याणकारी संकल्पों से युक्त हो।
एकाग्रमन की शान्ति से निकले शुभसंकल्प की शक्ति जब ब्रह्माण्ड के पालनहार हमें प्रदान करेंगे, तब सब शुभ ही शुभ होता है।
महाशिवरात्रि पर्व भारत की आधारभूत संस्कृति और कल्याणकारी सोच का प्रतीक है। महाशिवरात्रि पर पवित्र नदियों के जल से जलाभिषेक करने वाला हर शिवभक्त शिव का गण बन जाता है। कांवड़ धारी शिव-भक्तों की कोई जाति, वर्गभेद नहीं रह जाता। वातावरण शिवमय हो जाता हैं। इन शिवभक्तों की सेवा-सुश्रवा कर सब अपने को धन्य मानते हैं।
मुजफ्फरनगर जनपदवासी परम सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें फाल्गुनी महाशिवरात्रि व श्रावण मास की शिवरात्रि पर हरिद्वार से पवित्र गंगा जल लाने वाले करोड़ों शिवभक्तों की चरणरज लेने व उनकी सेवा करने का पुण्य प्राप्त होता है।
मुजफ्फरनगर की धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी, स्वयंसेवक, धर्मपरायण नागरिकगण, जिले के प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी, कर्मचारी इस पुण्य के भागीदार हैं। महाशिवरात्रि पर हम इन सबका अभिनन्दन और शिवभक्तों के चरणों में नमन् करते हैं।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’