एक सिपाही – हजार मोर्चे !

आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी जीवन के 72 वर्ष पूर्ण कर 73वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। एक विराट व्यक्तित्व का धनी छोटा सा चाय वाला विश्व का सबसे बड़ा लोकप्रिय राजनेता बन गया, यह भारत के लिए गर्व की बात है। यह भी एक सच्चाई है कि जहां देश-विदेश में मोदी के करोड़ों चाहने वाले हैं, वहीं सिसौली (मुज़फ्फरनगर) से लेकर हैदराबाद और कोलकाता तक उनके कट्टर दुश्मन (विरोधी नहीं) भी हैं। एक नेता जी तो अभी-अभी मोदी के दुश्मन बने हैं क्योंकि मोदी ने ग़लती से पात्र न होते हुए भी उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंप दिया था। एक कन्याकुमारी से राजनीतिक तीर्थाटन शुरू कर चुके हैं यह बताने को कि चौकीदार चोर है।

मोदी क्या है यह अब दुनिया भर में सूर्य के उजाले की तरह साफ-साफ दिख रहा है। नरेंद्र दामोदरदास मोदी की खूबियों और खामियों को गिनाने वालों की कमी नहीं है।

अपने-अपने ढंग से वे सब अपने काम में तत्पर हैं। हम इस पचड़े में क्यों पड़ें? हाँ, यह अवश्य कहेंगे कि देश के हित में ही नहीं, पूरे विश्व की मानवता की रक्षा के लिए एक सिपाही हजार मोर्चो पर पूरी मुस्तैदी के साथ लड़ रहा है।

हजार मोर्चो पर लड़ने की ताकत नरेन्द्र मोदी को तब मिली जब उसने सहनशीलता के मूल मंत्र को जीवन में ढाल लिया। सहनशीलता की यह ताकत नरेन्द्र मोदी को लोकप्रिय बनाये हुए है। सहिष्णुता उनका ऐसा कवच है जिस पर जातिवाद व साम्प्रदायिकता का ब्रह्मास्त्र भी असफल है। ‘विदेह की भांति जीवन जीने वाले नरेंद्र दामोदरदास मोदी को जन्मदिन पर हमारी कोटि-कोटि शुभकामनायें’।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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