आरबीआई एमपीसी की बैठक शुरू; शुक्रवार की सुबह होगा फैसले का एलान

आरबीआई की तीन दिवसीय द्विमासिक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक बुधवार को शुरू हुई। केद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास छह अक्तूबर (शुक्रवार) की सुबह एमपीसी की बैठक में लिए गए फैसलों का एलान करेंगे। बाजार के प्रतिभागी केंद्रीय बैंक की एमपीसी मीटिंग के एलान और नीतिगत रुख की बारीकी से निगरानी कर कर रहे हैं। आरबीआई आमतौर पर एक वित्तीय वर्ष में छह द्वि-मासिक बैठकें आयोजित करता है, जहां यह ब्याज दरों, धन की आपूर्ति, मुद्रास्फीति दृष्टिकोण और विभिन्न व्यापक आर्थिक संकेतकों पर विचार-विमर्श किया जाता है।

एसबीआई रिसर्च के अनुसार, भारतीय केंद्रीय बैंक इस सप्ताह फिर से प्रमुख रेपो दर को स्थिर रख सकता है। एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष की ओर से तैयार रिपोर्ट में हाल ही में कहा गया है, ‘घरेलू स्तर पर हमारा मानना है कि इकोनॉमी 6.50 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ हम लंबे समय तक ठहराव की स्थिति में हैं क्योंकि मुद्रास्फीति में नरमी आ रही है। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि आरबीआई का रुख समायोजन को वापस लेने का ही रहना चाहिए क्योंकि 2023-24 की शेष अवधि में मुद्रास्फीति के पांच प्रतिशत से नीचे जाने की संभावना नहीं है।

रिजर्व बैंक ने अप्रैल, जून और अगस्त में रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था। रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर आरबीआई दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का भी मानना है कि मौद्रिक नीति समिति अक्टूबर की बैठक में नीतिगत दर को वर्तमान स्तर पर ही रखेगी। रिजर्व बैंक ने अगस्त में ‘रेटव्यू- क्रिसिल का निकट भविष्य की दरों पर परिदृश्य’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि 2024 की शुरुआत में नीतिगत दर में 25 बेसिस प्वांइंट के कटौती की फिलहाल सशर्त संभावना है। इनफॉर्मिक्स रेटिंग्स का यह भी मानना है कि आरबीआई लगातार चौथी बार रेपो दर को अपरिवर्तित रखेगा।

खुदरा मुद्रास्फीति के एमपीसी की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा को पार करने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आक्रामक रुख को देखते हुए रिजर्व बैंक चौथी बार रेपो दर को अपरिवर्तित रख सकता है। मुद्रास्फीति विकसित अर्थव्यवस्थाओं सहित कई देशों के लिए चिंता का विषय रही है, लेकिन भारत अपने मुद्रास्फीति को काफी अच्छी तरह से प्रबंधित करने में कामयाब रहा है।

मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में आरबीआई ने मई  के बाद से रेपो दर को 250 आधार अंकों तक बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। ब्याज दरों को बढ़ाना एक मौद्रिक नीति साधन है जो आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में मदद करता है, जिससे मुद्रास्फीति दर में गिरावट में मदद मिलती है। गेहूं, चावल और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़कर 7.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थी जो फिर अगस्त में घटकर 6.8 प्रतिशत पर आ गई। 

अगस्त की मौद्रिक नीति बैठक के बाद रिजर्व बैंक ने 2023-24 के लिए देश की खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को संशोधित कर 5.4 प्रतिशत कर दिया, जबकि जून की मौद्रिक नीति की बैठक में इसके 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के बाद कहा था कि निकट भविष्य में मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। उन्होंने जून की बैठक के बाद कही गई बातों को दोहराते हुए कहा था कि महंगाई को महज सहिष्णुता दायरे में लाना पर्याप्त नहीं है; हमें मुद्रास्फीति को 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य आसपास रखने पर दृढ़ता से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 

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