गरीबों का आरक्षण !

जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था के चलते गरीब सवर्ण जातियां अपने को उपेक्षित व असहाय महसूस कर रही थीं कि ‘सबका विकास, सब का विश्वास’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने 2019 में संविधान में 103वां संशोधन कर सवर्ण जातियों- ब्राह्मण, कायस्थ, मराठा आदि के गरीबों को शिक्षा व सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। सामाजिक न्याय की दिशा में यह एक क्रान्तिकारी कदम था। जातिवादी राजनीति करने वाले मठाधीशों को इस निर्णय से बड़ी झुंझलाहट और परेशानी हुई। मोदी सरकार के इस सही निर्णय से परेशान होकर विपक्ष के जातिवादी नेताओं के इशारे पर इस फैसले को असंवैधानिक बताकर सुप्रीम कोर्ट में 40 याचिकाएं दाखिल कर दी गईं।

सवर्ण गरीबों को आरक्षण पर तर्क-वितर्क सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से ऐतिहासिक फैसला देते हुए 10 प्रतिशत आरक्षण को वैध और संविधान सम्मत घोषित कर दिया।

इसके पक्ष में अपना निर्णय लिखते हुए 5 सदस्यीय पीठ के एक न्यायधीश जस्टिस जे. बी. पारदीवाला ने कहा है- यह जाति आधारित आरक्षण खत्म करने की दिशा में मील का पत्थर है। आरक्षण का मकसद सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता है पर बेमियादी जारी नहीं रख सकते। इससे निजी स्वार्थ बन जाएगा।

उनकी यह टिप्पणी आरक्षण की राजनीति पर बहुआयामी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। गरीबी के आधार पर आरक्षण की सारर्थकता को अब शिद्दत से महसूस किया जाएगा।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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