यादों के झरोखे (4)

“शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याणदेव जी !”

ब्रह्मलीन 1008 स्वामी कल्याण देव महाराज से मुजफ्फरनगर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बच्चा-बच्चा अवगत है। मैं भी उनके नाम से परिचित था किन्तु प्रत्यक्ष दर्शन नहीं किये थे। तब ‘देहात प्रेस’ और आवास कच्ची सड़क, (सरवट रोड) पर था। गर्मियों में मैं नीचे चबूतरे पर सोता था और माता-पिता शेष परिवार ऊपरी मंजिल में। एक दिन सुबह तड़‌के मुझे एक शख्स ने सोते से उठाया और पूछा- चौधरी साहब कहां हैं?

वह व्यक्ति सफेद लुंगी पहने था। पैरों में जूतों या चप्पल के बजाय खड़ाऊ पहन रखी थी। शरीर के ऊपरी हिस्से पर कोई कमीज़-कुर्ता नहीं था, एक चादर लपेटी हुई थी। दाएं हाथ में एक लाठी पकड़ी हुई थी।

मैंने कहा- ऊपर हैं, बुला कर लाता हूँ। मैं उन महोदय से उनका नाम भी नहीं पूछ सका। ऊपर आकर पिताश्री (राजरूप सिंह वर्मा, संपादक ‘देहात’) से बोला- सुबह-सुबह एक आदमी आया है। आपको बुला रहा है। मैंने उनकी हुलिया बताई तो बोले- अरे ! ये तो स्वामी जी हैं। उस समय पिताश्री ने सिर्फ कच्छा-बनियान पहिना हुआ था। बिना कुर्ता-पायजामा पहिने ही वे तेजी से जीने से उतरे। मैं उनके पीछे-पीछे चला। वे उन्हें कार्यालय में ले आये और आदर के साथ बैठाया।

दरअसल वे स्वामी कल्याणदेव थे। उन्होंने मोरना में विद्यालय खोला हुआ था। हमारी ननिहाल ग्राम निरगाजनी के एक सज्जन वेदपाल सिंह विद्यालय के मैनेजर थे और हमारे ग्राम लछेडा के एक महानुभाव मेघराज सिंह प्रिंसिपल थे। चूंकि विद्यालय की स्थापना स्वामी जी ने की थी, इसलिये प्रिंसिपल साहब महाराज जी के परामर्श से कार्य करते थे किन्तु वेदपाल जी हर काम में अपनी बात आगे रखते थे। फलतः विद्यालय की मान्यता एवं अन्य कार्यों में बाधा पड़ती थी। वेद‌पाल जी पिताश्री को फूफा कहते थे और उनका आदर करते थे। पिताजी ने स्वामी जी को आश्वस्त कर संतुष्ट किया। वेद‌पाल जी को बुलाकर कहा कि मोरना कॉलेज का चक्कर छोड़ो और सहारनपुर जाकर ‘देहात’ का कार्यालय सम्भालो। जनकपुरी सहारनपुर के ‘देहात’ कार्यालय में वेदपाल जी काफी दिनों रहे।

स्वामी जी ने उन दिनों श्रीमद्भागवत् के उद्गम स्थल शुकतीर्थ के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया हुआ था। पिताजी के साथ मैंने स्वामी महाराज के अधिकांश अनुष्ठानों और कार्यक्रमों में शिरकत की। मुझे आज भी भलीभांति याद है जब पं. जवाहर लाल नेहरू, बाबू सम्पूर्णानन्द, अनंतशयनम अय्यंगार, गुलजारीलाल नन्दा, वी.वी. गिरि, पं. कमलापति त्रिपाठी, ज्ञानी जैल सिंह आदि न जाने कितने विशिष्ट जन स्वामी जी के आह्वान पर शुकतीर्थ पधारे थे।

स्वामी जी ने शुकतीर्थ के विकास के साथ ही घर-घर तक शिक्षा की ज्योति फैलाई, विशेषकर कन्या शिक्षा के विस्तार का महत्वपूर्ण कार्य कर लाखों परिवारों का कल्याण किया। उन्होंने 300 शिक्षण संस्थायें, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि विज्ञान केन्द्र, वृद्धाश्रम, गोशालाएं स्थापित कराके पूरी मानवता का कल्याण किया।

मैं परमपिता परमात्मा के प्रति आभारी हूँ कि मुझे ऐसे महामानव के चरणों में बैठने और उनका आशीर्वाद स्नेह प्राप्त करने का स्वर्ण अवसर मिला। स्वामी जी की अनुकम्पा व उनकी महानता की अनेक स्मृतियां मस्तिष्क में तैर रही हैं। कभी अवसर मिला तो कागज पर उतारने का प्रयास करूंगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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