कुंवर साहब ने जो लन्दन में फर्माया था, वह अब देश में सफल होता दिखा रहा है। सबसे पहले किसान आंदोलन के दिनों में पुराना छकड़ा ट्रैक्टर पंजाब से चुपचाप एक ट्रक में रख कर दिल्ली लाया गया। फिर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को बुला कर उसके सामने ट्रैक्टर को फूँका गया। इससे आग नहीं फैली तो ईडी दफ्तर के सामने टायर फुंकवा कर सिखाया गया कि आग इस तरह लगाई जाती है।
और यह रेलवे स्टेशनों, रेल गाड़ियों, दुकानों, वाहनों तथा सड़कों तक फ़ैल रही है। नियति का अजीब खेल है जिन लोगों के पुरखों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने को अपने कीमती कपड़े और पोशाकें फूंक दी थीं उनकी औलाद अपना उल्लू सीधा करने के लिए सार्वजानिक, निजी सम्पत्तियाँ फुंकवा कर आनंदमग्न होकर कह रहे हैं – लो हो गया काम !
“हमारे ये अग्निवीर”
जो अपना घर, अपनी दुकानें, अपनी ट्रेनें और वाहन तथा नेताओं के दफ्तरों को नहीं फूंक सकते वे सीमाओं पर दुश्मनों का मुकाबला कैसे करेंगे? ऐसे अनुशासनप्रिय और देशभक्त नौजवानों को लड़ाई-भिड़ाई, आगजनी की मुफ्त में ट्रेनिंग देकर नेतागण अपना और ऐसे अग्निवीरों का बड़ा कल्याण कर रहे हैं। चुनावी समर में भी ये ही नौजवान इनके काम आते हैं !
सरकार को सोचना चाहिए कि ऐसे महान अग्निवीरों को रेलवे प्रॉपर्टी तथा निजी सम्पत्तियों में आग लगाने वालों को भर्ती किया जाना क्या देशहित में है! सेना में भर्ती के समय यह शपथपत्र लिया जाना ज़रूरी है कि अभ्यर्थी कभी तोड़फोड़ और कानून विरोधी कुकृत्यों में शामिल नहीं हुआ। जो युवा अनुशासन व कानून के प्रति निष्ठान हो केवल उसका ही सेना में चयन होना चाहिए।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’
www.dainikdehat.com