कांग्रेस की वंशवादी तानाशाही और सोनिया, प्रियंका-राहुल की रिमोट कंट्रोल से पार्टी चलाने की रणनीति से आहत होकर गुलाम नबी आजाद ने पार्टी छोड़ने की घोषणा पर चाटुकार मंडली भूखे भेड़ियों की भाँति टूट पड़ी है। जयराम रमेश ने कहा है कि आजाद का डीएनए बदल गया। वे अब मोदीफाई हो गये हैं। पवन खेड़ा ने फटकारा कि कांग्रेस छोड़ने की परम्परा तो बड़ी पुरानी है। चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, आचार्य जे. बी. कृपलानी कांग्रेस छोड़ गये तो क्या बिगड़ा। प्रमोद त्यागी से प्रमोद कृष्णम् बने साधु ब्रांड नेता जी को भी मैडम के प्रति वफादारी दिखाने का मौका मिला।
देश जोड़ने की पारिवारिक मंडली को गुलाम नबी आजाद ने पहले कांग्रेस को जोड़ने को कहा है। बड़े-बड़े राजनीतिक पर्यवेक्षक, पत्रकार, स्तंभकार, विश्लेषक कांग्रेस की दुरावस्था पर अपने-अपने ढंग से टीका-टिप्पणी कर रहे हैं। कांग्रेस का क्या हश्र होना है, इसका अनुमान सभी को है।
यह एक दुःखद स्थिति है। डॉ. राममनोहर लोहिया ने गैर कांग्रेसवाद का नारा दिया था। नरेन्द्र मोदी कांग्रेस विहीन भारत की अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। अफसोस है कि इसकी जमीन राहुल गांधी ही तैयार कर रहे हैं।
आज जब क्षेत्रीय दल जातिवाद की बुनियाद पर प्राइवेट लिमिटेड कम्पनियों जैसा आचरण कर रही है, लोकतंत्र के हित में सवा सौ साल से अधिक समय से पुरानी राजनीतिक पार्टी का खंडहर बनना उचित नहीं। दिनों दिन उभार ले रही भारतीय जनता पार्टी के सामने अखिल भारतीय स्तर की राष्ट्रीय पार्टी का मजबूती से खड़ा होगा आवश्यक है। इसमें कांग्रेस ही सक्षम, समर्थ हो सकती है। सोनिया गाँधी ने कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र का कबाड़ा कर देश का अहित किया है।
इसकी शुरूआत सोनिया गांधी ने तभी से कर दी थी जब पी.वी नरसिम्हा राव ने उन्हें सलाह दी थी कि प्रियंका और राहुल को राजनीती में स्थापित करने की इच्छा रखने से पहले वे अपनी औलाद को तहजीब और शिष्टाचार सिखाने का काम करें।
गुलाम नबी आजाद हों या आनन्द शर्मा अथवा कपिल सिब्बल, ए.के. एंटनी, सभी ने सोनिया को सुधर जाने का सद् परामर्श दिया किन्तु उन्होंने कांग्रेस को रसातल में पहुँचाने की कसम खाई है। फिलहाल किसी क्षेत्रीय दल में राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने कीं कूवत नहीं दीख पड़ती। सम्भव है भविष्य में कोई रास्ता निकले। लोकहित में यह ठीक ही होगा।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’