बाबा टिकैत की हुंकार पर बना था किसान घाट !

किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह अपने समय के एकमात्र किसान नेता थे जिन्होंने महात्मा गांधी की ग्राम स्वराज्य की कल्पना को साकार करने के लिए ताउम्र संघर्ष किया। उन्होंने देश की राजनीति के केंद्र में किसान और खेती को स्थापित करने के लिए अपने जीवन का एक-एक क्षण समर्पित कर दिया।

वे चौधरी साहब ही थे जिन्होंने देश की खेतिहर जातियों को एकजुट कर उन्हें राजनीति का केंद्रबिंदु बनाने का सफल प्रयास किया। उन्होंने देश में खेती और किसानों को नयी पहचान और ऊंचा स्थान दिलाया। आज देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताना-बाना जिस प्रकार किसान के इर्द-गिर्द घूम रहा है, उसका श्रेय नि:संदेह चौधरी साहब को जाता है।

29 मई 1987 को किसान मसीहा के दिवंगत होने के समाचार से करोड़ों लोगों को आघात लगा। मैं भाई सत्यवीर अग्रवाल (जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष) तथा कार चालक गोपाल शर्मा के साथ चौधरी साहब के अंतिम दर्शनों को दिल्ली गया था।

दुर्भाग्य से उनके अंतिम संस्कार को लेकर वंशवादी राजनीतिज्ञों ने यमुना तट पर जगह की कमी बताकर अड़ंगा लगा दिया था। वे सोचते थे कि यमुना का किनारा केवल गांधी-नेहरू परिवार के लिए ही सुरक्षित है। अंत्येष्ठि में बाधा के समाचार से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करोड़ों किसान उद्वेलित हो उठे। दिल्ली के शासकों की फितरत को देख चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने हुंकार भरी और किसानों से दिल्ली कूच का आह्वान किया। बाबा टिकैत ने कहा- ‘हम महात्मा गांधी की समाधि की बगल में अपने प्रिय नेता की समाधि बनायेंगे।’ बाबा टिकैत की गर्जना से दिल्ली का सिंहासन डोल गया और तुरता-फुरती से अंतिम संस्कार तथा समाधि की वह जगह दी गई जहां आज किसान घाट है।

जब-जब खेती और किसान का नाम आयेगा तब-तब किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को याद किया जाएगा। 34वीं पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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