नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने कहा है कि देश की न्याय व्यवस्था "कानून के शासन" पर आधारित है, न कि "बुलडोज़र की ताकत" पर। उन्होंने यह टिप्पणी शुक्रवार को मॉरीशस में आयोजित सर मौरिस राल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 के उद्घाटन सत्र में की। इस कार्यक्रम का विषय था ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’।
जस्टिस गवई ने अपने संबोधन में उस फैसले का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कथित अपराधियों के घरों को बुलडोज़र से गिराने की कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसा कदम न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करता है, संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और कानून के शासन को कमजोर करता है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि कार्यपालिका न्यायिक प्रक्रिया की जगह नहीं ले सकती। इस अवसर पर मॉरीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और वहां की प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल भी मौजूद रहे।
अपने भाषण में CJI ने भारतीय न्यायपालिका के कई ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें 1973 का केशवानंद भारती मामला भी शामिल है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और हाशिये पर खड़े समुदायों को अधिकार दिलाने के लिए कानून और न्यायालयों की भूमिका अहम रही है।
जस्टिस गवई ने कहा, “कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति का प्रतीक है, जो अराजकता और कुशासन के बिल्कुल विपरीत खड़ा है।”
उन्होंने हालिया ऐतिहासिक फैसलों का भी उल्लेख किया जैसे कि मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने का निर्णय और निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने वाला फैसला।