लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है। इससे पहले संसद में उन्हें हटाए जाने की प्रक्रिया शुरू होने से उनके पास इस्तीफा देने का ही एकमात्र विकल्प बचा है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जज अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील बी. वी. आचार्य शामिल हैं।

146 लोकसभा सदस्यों ने वर्मा को हटाने की मांग की थी
लोकसभा में मंगलवार को बिरला ने बताया कि समिति अपनी रिपोर्ट जल्द पेश करेगी। तब तक जज वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लंबित रहेगा। उन्होंने कहा कि 21 जुलाई को 146 लोकसभा सदस्यों ने वर्मा को हटाने की मांग की थी, जिसमें भाजपा के रवि शंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी शामिल थे।

इस्तीफा देने पर पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे
जजों की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, यदि वर्मा संसद के सामने अपना पक्ष रखकर मौखिक रूप से इस्तीफा देते हैं, तो उन्हें सेवानिवृत्त जज के रूप में पेंशन और अन्य लाभ मिलेंगे। हालांकि, यदि संसद उन्हें हटाती है, तो ये लाभ नहीं मिलेंगे।

संविधान का अनुच्छेद 217
संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार हाईकोर्ट के जज अपने हस्ताक्षर के साथ इस्तीफा दे सकते हैं। इसके लिए किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। जज अपने इस्तीफे के लिए संभावित तारीख भी निर्धारित कर सकते हैं और उस तारीख से पहले इस्तीफा वापस ले सकते हैं।

पूर्व में सीजेआई ने इस्तीफा देने को कहा था
तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर वर्मा को हटाने के लिए कहा था। यह पत्र तीन जजों की जांच समिति की रिपोर्ट पर आधारित था। वर्मा ने उस समय इस्तीफा देने से इनकार किया था।

न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968
इस अधिनियम के तहत जब किसी सदन में किसी जज को हटाने का प्रस्ताव स्वीकार होता है, तो अध्यक्ष या उपाध्यक्ष तीन सदस्यों की समिति गठित करते हैं, जिसमें सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट का जज, एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित कानूनी विशेषज्ञ शामिल होते हैं। समिति की रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है और फिर बहस होती है।

घर में आग लगी थी, जली नकदी मिली
इस साल मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहते हुए वर्मा के घर में आग लगी थी। इस दौरान जले हुए नकद बंडल बरामद हुए थे। वर्मा ने इसका ज्ञान नहीं होने का दावा किया था। सुप्रीम कोर्ट की समिति ने गवाहों के बयान के आधार पर उन्हें दोषी पाया और उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया, जहां उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं दिया गया।

पूर्व में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी और कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन भी महाभियोग की प्रक्रिया का सामना कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। जज वर्मा के खिलाफ यह पहली महाभियोग प्रक्रिया नए संसद भवन में होगी।