13 वर्षीय बालक जब वेद पाठ करता है तो संस्कृत के विद्वान भी उसके मंत्रोच्चार को सुन दंग रह जाते हैं। वैदिक अनुष्ठानों व हवन में पारंगत यह नन्हा पंडित शहर में होने वाले यज्ञों में आकर्षण का केंद्र है। अब उसकी इच्छा है कि वह बड़ा होकर अयोध्या में बन रहे मंदिर में भगवान राम लला की सेवा करे। यह कहानी डुमरिया निवासी आदिवासी बालक शिवचरण मांझी की है।
2009 में महज दो वर्ष की आयु में पिता की मौत के बाद उसकी मां सप्तर्षि गुरुकुल आश्रम में छोड़ गई थी। गुरुकुल में शिवचरण अकेला ऐसा नहीं है, बल्कि ऐसे 58 आदिवासी बच्चे वेद, उपनिषद, कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के हैं।
इनका उपनयन संस्कार कराया जाता है। वे चाेटी रखने की परंपरा का भी पालन कर रहे हैं। यहां के कई बच्चे शादी-विवाह से लेकर धार्मिक अनुष्ठान करा रहे हैं। कई मंदिरों में पुजारी नियुक्त हैं।
गम्हरिया प्रखंड के सापड़ा गांव में गुरुकुल की शुरुआत 2001 में आर्यसमाज के आचार्य पंडित प्रकाशानंद ने की थी। अभी इनके शिष्य रत्नाकर शास्त्री व उनकी पत्नी शेफाली मलिक इस आश्रम काे संचालन कर रही हैं। दंपती खुद भी वेद तथा उपनिषद के अध्येता हैं।
इसके साथ ही 9 विद्वान यहां आकर बच्चाें काे नि:शुल्क पढ़ा रहे हैं। यहां से 200 से अधिक बच्चे मध्यमा (दसवीं) कर चुके हैं। 5 से 15 आयुवर्ग के कुल 60 विद्यार्थी संस्कृत में वैदिक शिक्षा ले रहे हैं
, लेकिन कोई छात्र ब्राह्मण नहीं है। इनमें से 2 को छोड़कर शेष आदिवासी हैं। ये बच्चे गुड़ाबांदा, डुमरिया जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्राें से हैं। इन विद्यार्थियों को श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय कंठस्थ हैं। यहां शिक्षा, रहना-खाना सब नि:शुल्क है।